Easy Office

India and Professional Cricket league !!!

CA. Dashrath Maheshwari , Last updated: 18 May 2008  
  Share


भारत की प्रोफ़ेशन क्रिकेट लीग्स के मुद्दे पर - एक समय था जब भारतीय लोग इस बात पर रोते थे की भारत की सरकार खेलों को प्रोत्साहित नही करती. खेल सुविधाओं का अभाव, खिलाडियों की दुर्दशा जैसे मुद्दे भी पुराने पड गए. कुछ नहीं हुआ. अब बाज़रवाद का जोर है और १३ घोडों से जुती सरकार कमजोर है. फ़िसड्डी भारत में खेल अब एशियाड या ओलम्पिक में पदक जुगाडने की चीज़ नहीं है - वो तो होने से रहा, ये मनोरंजन है - टाईमपास. जैसे राजपूत आपस में ही लडाई-लडाई खेलते थे और बाहर वाले से पंगा नहीं लेते थे वैसे ही अपन देसी क्रिकेट की टीमें बना बना के २०-२० खेलने का प्लान है! तो क्या गलत है? आन-बान भी बनी रहेगी और चैंपियन भी तो कोई अपने वाला ही बनेगा ना - कित्तों को रोजगार मिलेगा सोचो! लेकिन छाती-कूटा लॉबी सक्रीय है - राग ये है की खेल नहीं है धंधा है - खिलाडी नहीं है उत्पाद है. खेल भी एक व्यवसाय है यह सच है तो फ़िर इतना बवाल क्यों? खिलाडियों का तो भला ही हो रहा है और खेलों का बाज़ार बढ रहा है - बिल्कुल पश्चिम की तर्ज पर. अगर कुछ नहीं बढ रहा है तो वो है राष्ट्रीयता और अंतर्राष्ट्रीय प्रतिस्पर्धा वाले खेलों में भारतीय खिलाडियों की विश्वस्तरीयता हां इस मुद्दे पर कोई टीवी चैनल रोता हुआ नहीं दिखता! सौ- दोसौ क्रिकेटर करोडपति हो जाएंगे इस पर हौल जरूर पड रहे हैं. टीवी चैनलों पर फ़िलासाफ़ियां दी जा रही हैं. हमारे मीडिया की प्राथमिकताएं क्या हैं? उसके ओछेपन पर हम क्यों शोर नहीं मचाते!? हमेशा की तरह एक बार फ़िर हमारी प्राथमिकताएं बेतरतीब हैं माना लेकिन कुछ खिलाडियों का ही सही, भला तो हुआ! एक खेल का ही सही कुछ बाजार तो बढा. मुझे तो इसमें कुछ गलत नहीं दिखाता. आर्थिक दुर्दशा से जूझते खिलाडी या संपन्न खिलाडी क्या बेहतर है? और आगे दूसरे खेलों पर भी इस बाजारवाद का असर होगा ये तो खुशी की बात है! हम हर वक्त शिकायती मुद्रा में क्यों होते हैं? **DM
Join CCI Pro

Published by

CA. Dashrath Maheshwari
(TaXpert)
Category Others   Report

  4776 Views

Comments


Related Articles


Loading