Urdu Poems (Sorry Not in English )


(Guest)

SimTe baithe ho kyuN buzdiloN ki tarah

 

सिमटे बैठे हो क्यूँ बुजदिलों की तरह
आओ मैदान में गाज़ियों की तरह

कौन रखता हमें मोतियों की तरह
मिल गये खाक में आँसुओं की तरह

नूर-ए-निखत से मामूर यादें तेरी
खुशबुओं की तरह, जगनुओं की तरह

रोशनी कब इतनी मेरे शहर में
जल रहे हैं मकाँ मशगलों की तरह

दाद दीजिये के हम जी रहे हैं वहाँ
हैं मुहाफिज जहाँ कातिलों की तरह

जिन्दगी अब हमारी खता बख्श दे
दोस्त मिलने लगे, महसिनों की तरह

 

 

Aaiinaa-e-khuloos-o-wafaa chuur ho gaye

कैसे अल्लाह वाले हैं ये ऐ खुदा

गुफ्तगू, मशवरे साजिशों की तरह

मेरी बातों पे हंसती है दुनिया अभी
मैं सुना जाऊंगा फैसलों की तरह

तुम भी दरबार में हाजिरी दो हाफिज
फिर रहे तो कहाँ मूफलिसों की तरह
 

आईना-ए-खुलूस-ओ-वफा चूर हो गये
जितने चिराग-ए-नूर थे, बेनूर हो गये

मालूम ये हुआ के वो रास्तते का साथ था
मंजिल करीब आयी तो हम दूर आ गये

मंजूर कब थी हमको वतन से ये दुरियाँ
हालात की जफाओं से मजबूर हो गये

कुछ आ गयी हम अहल-ए-वफा में भी तमकनत
कुछ वो भी अपने हुस्न पे मगरूर हो गये

चारागारों की ऐसी इनायत हुई हफीज़
के जो जख़्म भर चले थे वो नासूर हो गये

 

 

 

 

 

फूल पर जब किरण थरथराई
वो नशीली नजर याद आई

उनकी आमद का पैगाम सुन कर
भर गया और दर्द-ए-जुदाई

हम कहाँ और बज्म-ए-जानाँ
उनके जलवों ने की रहनुमाई

एक निगाह-ए-करम की बदौलत
बज्म-ए-दिल देर तक जगमगाई

हुस्न था इल्तिफा-ए-मुजस्सम
उमर ही कर गयी बे-वफाई

रात भर खून?? सितारे
तब सुहानी सहर मुस्कुराई

गुल-बा-दामन हैं हंसीं जलवे
वज्द कर ले नजर आजमाई