KAISE MANJAR....!!!!

CA Raunak Maheshwari (in journey called LIFE) (394 Points)

17 January 2011  

कैसे मंज़र

कैसे मंज़र सामने आने लगे हैं
गाते-गाते लोग चिल्लाने लगे हैं

अब तो इस तालाब का पानी बदल दो
ये कँवल के फूल कुम्हलाने लगे हैं

वो सलीबों के क़रीब आए तो हमको
क़ायदे-क़ानून समझाने लगे हैं

एक क़ब्रिस्तान में घर मिल रहा है
जिसमें तहख़ानों में तहख़ाने लगे हैं

मछलियों में खलबली है अब सफ़ीने
उस तरफ़ जाने से क़तराने लगे हैं

मौलवी से डाँट खा कर अहले-मक़तब
फिर उसी आयत को दोहराने लगे हैं

अब नई तहज़ीब के पेशे-नज़र हम
आदमी को भूल कर खाने लगे हैं

-- दुश्यन्त कुमार