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 तेलंगाना के विरोध में 20 मंत्रियों का इस्तीफा

 
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विजयनगर. अलग तेलंगाना राज्य के गठन की प्रक्रिया शुरू करने के विरोध में अभूतपूर्व क़दम उठाते हुए आंध्र प्रदेश कैबिनेट के 20 मंत्रियों ने शनिवार को सामूहिक इस्तीफ़ा दे दिया। इस्तीफ़ा देने वाले सारे मंत्री आंध्र और रायलसीमा क्षेत्र के हैं।







इसी के साथ 33 सदस्यीय मंत्रिमंडल में अब सिर्फ़ 13 मंत्री बचे हैं और ये सब के सब तेलंगाना क्षेत्र से हैं। इस्तीफ़े के बाद स्थानीय निकाय मंत्री रामनारायण रेड्डी ने पत्रकारों को बताया कि लगभग 140 विधायकों के इस्तीफ़े के बाद मंत्रियों पर भी दबाव था कि वे उनके समर्थन में कुछ क़दम उठाएं।







उन्होंने कहा कि तीन मंत्रियों के एक दल ने मुख्यमंत्री के रोसैया को फ़ैसले से अवगत करा दिया है और आगे की रणनीति का फ़ैसला जल्दी ही किया जाएगा। उन्होंने कहा कि इस्तीफ़ा देने वाले मंत्रियों ने संयुक्त आंध्र प्रदेश के लिए लड़ने का फ़ैसला किया है।







रामनारायण रेड्डी ने कहा कि उन्हें उम्मीद है कि अभी भी राज्य और केंद्र सरकार अलग तेलंगाना के मामले पर पुनर्विचार करेगी।

 

 

 

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राज्य का तो बहाना है... सीएम की कुर्सी पाना है

शिवेंद्र सिंह चौहान  Saturday December 12, 2009
 

 

 

नए राज्य बनाने को लेकर चल रहे आंदोलनों और उनके नेताओं के बारे में मेरी तो यही राय है। अभी तेलंगाना का मामला गर्म है। कुछ दिनों में तमाम और जगह आग लगेगी। दुनिया का सबसे ताकतवर देश अमेरिका करीब सवा दो सौ साल पहले स्वतंत्र हुआ। वहां कुल पचास राज्य हैं। 1959 में अलास्का और हवाई के बाद वहां कोई नया राज्य नहीं बना। क्षेत्रफल के लिहाज से टेक्ससअलास्का और कैलिफोर्निया जैसे राज्य हमारे सबसे बड़े राज्य महाराष्ट्र से दो गुना से ज्यादा बड़े हैं। तो क्या वहां विकास नहीं होताहमारा संविधान बने 60 साल भी नहीं हुए हैं और 28 राज्य बन चुके हैं जबकिकम से कम 9 और इलाके, राज्य बनने की कतार में हैं।



यह कितना बेतुका दावा है कि छोटे राज्यों में विकास तेजी से होता है। देश के बड़े राज्य जैसे महाराष्ट्र और गुजरात विकास के मामले में भी काफी आगे हैं जबकि असमउत्तराखंड,झारखंड और छत्तीसगढ़ जैसे छोटे राज्य इस लिहाज़ से काफी पीछे हैं। अगर छोटे राज्य का तर्क मान लिया जाए तो फिर भारत को भी छोटे-छोटे देशों में क्यों न बांट दिया जाए?फिर तो विकास की आंधी ही चल पड़ेगीशायद। सीधी सी बात हैविकास का संबंध क्षेत्रफल से नहीं सरकार की कार्यकुशलता से है। बिहार का ही उदाहरण ले लीजिए। जो राज्य लालू राज में घिसट रहा था वह नीतीश कुमार के नेतृत्व में अपने पैरों पर खड़ा होकर, धीरे-धीरे ही सही, चल तो रहा है।



नए राज्यों के बनने में नेताओं की व्यक्तिगत महत्वाकांक्षा ज्यादा और जनता की भलाई की भावना कम ही नजर आती है। शिबू सोरेन ने झारखंड के लिए खूब आंदोलन गांठा, राज्य भी बन गया लेकिन विकास नहीं हुआ। होगा कैसे, सारा समय तो कुर्सी पाने और बचाने की तिकड़म में ही निकल जाता है। झारखंड में ही कोड़ा जैसे नेताओं ने अपना जो विकास किया, वह देखने लायक है। तेलंगाना को अलग राज्य बनाने की मांग में भी मुझे के. चंद्रशेखर राव का अपना हित ज्यादा दिखता है। वह पूरे राज्य के सर्वमान्य नेता नहीं हैं और न ही उनकी पार्टी का इतना व्यापक जनसमर्थन है कि उन्हें कभी मुख्यमंत्री की कुर्सी नसीब हो सके। ऐसे में अलग राज्य बनवाकर वहां का मुखिया बनना ज्यादा मुफीद है। राव भी यही कर रहे हैं।

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yes, this is a political decision.

"नए राज्यों के बनने में नेताओं की व्यक्तिगत महत्वाकांक्षा ज्यादा और जनता की भलाई की भावना कम ही नजर आती है।"l


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