Story of Commission Agents (Hindi)............... Must read

Knowledge resource 2877 views 4 replies

"व्यथा-बिचौलियों की" 
 
***राजीव तनेजा***
मैँ भगवान को हाज़िर नाज़िर मान आज अपने पूर्ण होशोवास तथा  सही मानसिक संतुलन में अपने तमाम साथियों कि ओर से ये खुलेआम ऐलान करता हूँ कि मैँ एक बिचौलिया हूँ और लोगों के रुके काम...बिगड़े काम बनवा...पैसा कमाना हमारी  हॉबी...हमारा पेशा...हमारी फितरत है।ये कहने में हमें  किसी भी प्रकार का कोई संकोच..कोई ग्लानि या कोई शर्म नहीं कि ...कई बार अपने निहित स्वार्थों के चलते हम पहले दूसरों के बनते काम बिगड़वाते हैँ और बाद में अपना टैलैंट...अपना हुनर दिखा उन्हें  चमत्कारिक ढंग से हल करवाते हुए अपना...अपने दिमाग का लोहा मनवाते हैँ।दरअसल!..यही सब झोल-झाल हमारे जीने का..हमारी आजीविका का साधन हैँ।
"क्या कहा?"...
"हमें शर्म आनी चाहिए इस सब के लिए?"...
"हुँह!... "जिसने की शर्म ...उसके फूटे कर्म"...
"और वैसे भी जीविकोपार्जन में कैसी शर्म?
वैसे तो हम कई तरह के छोटे-बड़े काम करके अपना तथा अपने बच्चों का पेट पालते हैँ जैसे हम में से कोई प्रापर्टी डीलर है...

तो कोई शेयर दलाल...कोई सिमेंट-जिप्सम-कैमिकल वगैरा की दलाली से संतुष्ट है तो कोई....अनाज और फल-सब्ज़ियों से मगजमारी कर बावला बना बैठा है...कोई कोयले की दलाली में हाथ-मुँह सब काले करे  बैठा है ...तो कोई लोगों के ब्याह-शादी और निकाह करवाने जैसे पावन और पवित्र काम को छोड़ कमीशन बेसिस पे या फिर एकमुश्त रकम के बदले उनके तलाक करवाने के  ठेके ले अपनी तथा अपने परिवार की गुज़र-बरस कर रहा है।
हमारी व्यथा सुनिए कि हम में से कुछ को ना चाहते हुए भी मजबूरन ऐसे काम में हाथ डालना पड़ता है जिसका जिक्र यहाँ इस ब्लॉग पर यूँ ओपनली करना उचित नहीं क्योंकि आप पढने वाले और हम लिखने वाले दोनों के ही घरों में माँ-बहनें हैँ।

लेकिन क्या करें?...पैसा और ऐश..दोनों की लत हमें कुछ इस तरह की लग चुकी है कि लाख चाहने के बावजूद भी हमें कोई और काम-धन्धा रास ही नहीं आता।इन सब कामों के अलावा और भी बहुत से काम-धन्धे हैँ जिनमें हमारे कई संगी-साथी हाथ आज़माते हुए आगे बढने की कोशिश कर रहे हैँ लेकिन अगर सबकी लिस्ट यहीं देने लग गया तो इस पोस्ट के कई और पन्ने तो इसी सब में भर जाएंगे जो यकीनन आपको नागवार गुज़रेगा।लेकिन हाँ!...अगर आप फुर्सत में हैँ और तसल्ली से हमारे बारे में कोई शोध-पत्र या निबन्ध वगैरा तैयार करने की मुहिम में जुटे हैँ या जुटना चाहते हैँ तो आपका तहेदिल से स्वागत है। तो ऐसे में आप मुझे मेरी पर्सनल मेल पर मेल भेज कर मुझसे मेल कर सकते हैँ।मेरा ई.मेल आई.डी है दल्ला नम्बर वन @ बिचौलिया.कॉम  
हाँ!..आपको मेल आई.डी देने से याद आया कि आप लोगों ने ना जाने किस जन्म का बदला लेने की खातिर हमें नाहक बदनाम करते हुए  हमें 'बीच वाला'..'बिचौलिया'...'दल्ला'...'दलाल' इत्यादि नाम दिए हुए हैँ जबकि ना तो हमें ढंग से ताली बजाना आता है और ना ही उचक-उचक कर भौंडे तरीके से कमर मटकाना पसन्द है।ठीक है!...माना कि हम कई बार जल्दी बौखला के शोर शराबा शुरू कर देते हैँ ..हो हल्ला शुरू कर देते हैँ ...तो क्या सिर्फ इसी बिनाह पे आप हमें 'दल्ला' कहना शुरू कर देंगे?"...
क्या हम आपके साथ इज़्ज़त से...तमीज़ से पेश नहीं आते?हम आपको हमेशा जी...जी कह कर पुकारते हैँ...पूरी इज़्ज़त देते हैँ।जब आप हमारे पास आते हैँ तो ना चाहते हुए भी हम आपको चाय नाश्ते के लिए पूछते हैँ।वैसे ये अन्दरखाने की बात है कि अगर हम एक खर्चा करते हैँ तो उसके बदले सौ वसूलते भी हैँ।जब हम आपके लिए ना चाहते हुए भी इतना सबकुछ कर सकते हैँ तो क्या आप हमें इज़्ज़त से नहीं बुला सकते ?और अच्छे भले सलीकेदार नाम भी तो हैँ...हमारे लिए उनका प्रयोग भी तो किया जा सकता है जैसे... 'मीडिएटर'...'एडवाईज़र'....'कँसलटैंट' वगैरा...वगैरा...
आप कहते हैँ कि हम एक नम्बर के फ्राड हैँ और अपनी चिकनी-चुपड़ी बातों से आप लोगों को बहला-फुसला के अपना उल्लू सीधा करते हैँ।
चलो!..माना कि कई बार हम एक ही प्लाट या मकान को कई-कई बार बेच आप लोगों को चूना लगाने से भी नहीं चूकते हैँ।लेकिन क्या आपको डाक्टर कहता है कि आप हमारी मीठी-मीठे...चिकनी-चुपड़ी बातों में आ अपना धन...अपना पैसा..अपना चैन और सुकून गवाएँ?"
क्या कहा?..अनैतिक है ये?...
अरे!...अगर हम कम समय में अकृत पैसा इकट्ठा करना चाहते हैँ तो इसमें आखिर गलत ही क्या है? वैसे आप ये बताएँगे कि यहाँ कौन किसको नहीं लूट रहा है जो हम साधू-संत...महात्मा बनते हुए सबको बक्श दें?
क्या डाक्टर और कैमिस्ट फ्री सैम्पल वाली दवाईयों को मरीज़ों को चेप अँधा पैसा नहीं कमा रहे हैँ?या... प्राईवेट स्कूल वाले ही अभिभावकों को लूटने में कौन सी कसर छोड़ रहे हैँ?...
क्या हलवाई मिठाई के साथ डिब्बा तौल कर पब्लिक को फुद्दू नहीं बना रहे हैँ?..
या सरकारी कर्मचारी काम के समय को हँसी-ठट्ठे में उड़ा मुफ्त में तनख्वाह हासिल नहीं कर रहे हैँ?
किस-किस को रोकोगे तुम?...किस-किस को कोसोगे तुम?
अरे!..फफूंद है ये हमारे सिस्टम पर...जितनी आप साफ करोगे..उससे कई गुणा रातोंरात और उग कर फैल जाएगी।इसलिए ये सब बेकार की दिमागी कसरत और धींगामुश्ती छोड़ आप ध्यान से मेरी आगे की बात सुनें।...
 
हमारे काम करने ढंग आप जैसे सीधे-सरल लोगों के जैसा एकदम 'स्ट्रेट फॉरवर्ड' नहीं बल्कि आप सब से अलग...सबसे जुदा है।कई बार हम सूट-बूट पहन एकदम सोबर...जैंटल मैन टाईप 'मीडिएटर' का रूप धारण कर लेते हैँ... तो कभी समय की नज़ाकत को भांपते हुए 'एडवाईज़र'  वगैरा का भेष भी बदल लेते हैँ और कई बार अपनी औकात पे आते हुए एकदम नंगे हो...अपनी जात दिखाने से भी नहीं चूकते हैँ।
एक्चुअली!...हमें अपनी हर चाल को(सामने दिखाई देती सिचुऐशन के हिसाब से)..ऊपर से नीचे तक और...आगे से पीछे तक...अच्छी तरह सोचते-समझते हुए चलना होता है क्योंकि पासा पलटने में देर नहीं लगती। सच ही तो कह गए हैँ बड़े-बुज़ुर्ग कि....
"दुर्घटना से देरी भली" और....
 'सावधानी हटी तो दुर्घटना घटी'
कभी हम नरम रह कर क्रिटिकल सिचुएशनज़ को संभालते हैँ तो  कभी बौखला के गर्म होते हुए अपना काम साधते हैँ।दरअसल!...ये सब हमारे विवेक पर नहीं बल्कि सामने वाले के व्यवहार पर निर्भर करता है...डिपैंड करता है कि हम उसे अपना कौन सा रूप दिखाएँ?"..सरल वाला ठण्डा रूप?...या खौल कर उबाले खाता हुआ रौद्र रूप?
दरअसल पहले तो हम आराम से...प्यार से...मेल-जोल की ही बात करते हैँ और आपसी मनुहार से ही अपना काम निकालने की कोशिश करते हैँ लेकिन जब इस तरह के हमारे सारे प्रयास...सारी कोशिशें  फेल हो जाती हैँ या  विफल कर दी जाती हैँ।तब कोई और चारा ना देख हमें ना चाहते हुए भी कमीनियत पे उतरते हुए टुच्चेपन का सहारा लेना पड़ता है।
आज इस ब्लाग के माध्यम से हम ये 'शपथ-पत्र' भी साथ ही साथ दे देना चाहते हैँ कि... "हम 'बिचौलियों' की पूरी कौम हर प्रकार से भलीभांति स्वस्थ...तन्दुरस्त और हट्टी-कट्टी है"...
"क्या कहा?"...
"विश्वास नहीं है आपको हमारी इस काली ज़बान पर?"...
"अरे!..रोज़ाना ही तो लाखों-करोड़ों के सौदे हमारी इस ज़बान के नाम पर  ही स्वाहा हो इधर-उधर हो जाते हैँ।मतलब कि टूट  कर...बिखर कर छिन्न-भिन्न हो जाते हैँ।दरअसल!...ऐसा तब होता है जब हम अँधाधुँध कमाई के चलते...दारू के साथ-साथ...दौलत के नशे में भी चूर होते हैँ या फिर...बाज़ार में छाई तेज़ी के चलते....आने वाले मंदी के दौर को ठीक से भांप नहीं पाते हैँ।
"क्या कहा?...ज़बान से फिरना गलत बात है"...
"नामर्दानगी की निशानी है ये?...
अरे!...ऐसी हालत में अपनी ज़बान से फिर कर बैकआउट हो जाना ही बेहतर रहता है।अब इसमें कहाँ की समझदारी है?कि...हम इस कलमुँही ज़बान के चलते लाखों-करोड़ों का घाटा बिला वजह सहते फिरें?और ये आप इतनी जल्दी कैसे भूल गए कि आप ही ने तो खुद अपनी मर्ज़ी से ही हमारा नामकरण कर हमें 'बिचौलिए' का नाम दिया है और 'बिचौलिया' माने...बीच वाला याने के!..ना औरत और ना ही मर्द"
तो ऐसी हालत में मर्दानगी का तो सवाल ही पैदा नहीं होता है ना।"
वैसे एक बात कहूं?...
ये आप जो हम पर कोई ना कोई इलज़ाम लगाते रहते हैँ..थोपते रहते हैँ...वो सब निरे झूठ के पुलिन्दों के अलावा और कुछ नहीं है।अब आप हमें ये जो 'बिचौलिया-बिचौलिया' कह के चिढाते हैँ।तो ये मैँ आपको खुलेआम चैलैंज करता हूँ कि आप हमारे...हमारे बच्चों के जितना मन करे उतने 'एम.आर.आई' और  'डी.एन.ए. टैस्ट' करवा लें।इतने सब से तसल्ली ना हो तो बेशक 'सी.टी.स्कैन' और सौ दो सौ 'रंगीन एक्सरे' भी खिंचवा के देख लें।अगर हम में या...हमारी नस्ल में कोई कमी-बेसी निकल आए तो बेशक आप अभी के अभी गिरेबान पकड़ हमारा टेंटुआ दबा डालें।हम 'उफ' तक ना करेंगे।और ऐसा दावा हम किसी 'शिलाजीत' युक्त चूर्ण या फिर 'वियाग्रा' के रोज़ाना के सेवन के बल पर नहीं कह रहे हैँ।दरअसल ये सब चीज़ें तो हम ऐसे ही शौकिया इस्तेमाल कर लिया करते हैँ...जस्ट फॉर ए चेंज।

एक्चुअली!...ये जो चिंकी...मिंकी...टीना...मीना और नीना हैँ ना?...इस सब उठा-पटक और धींगामुश्ती की इतनी हैबिचुअल हो चुकी हैँ कि इन को बिना एक्स्ट्रा पावर या एक्स्ट्रा डोज़ के सैटिसफॉई करना मुश्किल ही नहीं बल्कि नामुमकिन होता है।
"जहाँ तक आपका आरोप है कि...हम मेहनत कर हलाल की खाने के बजाए आराम से बैठे-बैठे हराम की कमाई खाना चाहते हैँ।
तो इसके जवाब में बस यही कहना चाहूँगा कि आपका ये आरोप सरासर गलत और बेबुनियाद  है। दरअसल!...किसी भी देश का कोई भी कानून ये नहीं कहता कि पैसा कमाने के लिए पसीना बहाना ज़रूरी है।और जब बिना कोई काम-धाम किए...बैठे-बैठे सिर्फ ज़बान चलाने से ही हम पर लक्ष्मी मैय्या की फुल्ल-फुल्ल कृपा रहती है तो हम बेफाल्तू में क्यों धकड़पेल कर बावले होते फिरें?
अब अगर ऊपरवाले ने!...हमसे प्रसन्न हो हमें ये तेज़ कैंची के माफिक कचर-कचर करती जिव्हा रूपी नेमत बक्शी है तो क्यों ना इससे भरपूर फायदा उठाया जाए?और ये आपसे किस गधे ने कह दिया कि दलाली करना गलत बात है?...पाप है?
सही मायने हमसे हमसे बड़ा और हमसे सच्चा देशभग्त आपको पूरे हिन्दोस्तान में नहीं मिलेगा।
"क्यों ज़ोर का झटका धीरे से लगा ना?"...
अरे!...हाथ कँगन को आरसी क्या और पढे-लिखे को फारसी क्या?"....
एक्चुअली!...आजकल की पढी-लिखी जमात को भी फारसी पढनी नहीं आती है लेकिन मुहावरा तो मुहावरा होता है...मुँह में आ गया तो बोल दिया।...
खैर!...आप खुद ही देख लें कि कैसे हमने एक मिमियाते हुए शासक को गरज कर बरसना सिखाते हुए अपने देश को गंभीर संकट और खर्चे से बचाया।
अब आप कहेंगे कि..."
"कैसा शेर?"...
"कैसा मिमियाना?"और...
" कैसा खर्चा?"...
"अब ये जो अपने मनमोहिनी सूरत वाले 'मनमोहन सिंह' जी हैँ...वो सोनिया जी के सामने मिमियाते ही हैँ ना?"
अब आप खुद अपने दिल पे हाथ रख के बताएँ कि अच्छी-भली मिमिया कर चलती 'मनमोहन सरकार' से समर्थन वापिस ले उसे गिराने की साजिश रच क्या वामपंथियों ने सही किया?
"नहीं ना?"...
 
"सुनो!...वो पागल के बच्चे किसे प्रधानमंत्री बनाने चले थे?
    
अपनी हाथी वाली बहन जी को...और हिमाकत देखो कि कुल जमा तेरह सांसदों के बल पर  वो देश की कमान संभाल उसकी प्रधानी करने के ख्वाब पालने लगी थी।...
सोचो..सोचो!...सोचने में कौन सा टैक्स लग रहा है?
लेकिन क्या चंद मच्छरों के किसी कटखनी मक्खी के साथ मिलकर छींकने से कभी छींका फूटा है जो अब फूटेगा?...
हाँ!...लेकिन एक बात तो माननी पड़े इन बहन जी की कि इन्हें टैक्स वालों को बरगला बेनामी संपत्ति को दान में...गिफ्ट में मिली संपत्ति बता नामी बनाना अच्छी तरह आता है।

खैर !...जैसे ही हम में से एक को पता चला कि कलयुग में ऐसा घोर अनर्थ होने जा रहा है...तुरंत सक्रिय हो पहुँच गए मुलायम रूपी संजीवनी अमरबेल ले कर कि...

"बाल ना बांका कर सकेगा जो वामपंथ बैरी होय"...
"जाको राखे साईयाँ...मार सकै ना कोय"
"बस आते ही उन्होंने इसको...उसको...सबको संभालने की जिम्मेदारी अपने ऊपर ली और जोर-शोर से जोड़-तोड़ की मुहिम में जुट गए।नतीजा आपके सामने है...जीजान की मेहनत और तिकड़मबाजी ने सही में बिना 'नवजोत सिंह सिद्धू'(भाजपा) के ये सिद्ध कर दिखाया कि "सिंह इज़ किंग"
अब आप कहेंगे कि..."इस सब जोड़-जुगाड़ से फायदा क्या हुआ?"...
"वो तमाम छोटे-बड़े  टीवी चैनलों पर जो खचाखच भरे सभा मंडप में बार-बार हज़ार-हज़ार के नोटों की गड्डियाँ गड्डमड्ड होती दीख रही थी...उसका क्या?"
"अब क्या बताऊँ?"...
"हमने तो अच्छी तरह से जाँच-परख सिर्फ और सिर्फ असली 'अरबी नस्ल के घोड़ों पर ही चारा फैंका था और उन्हें रिझाने में हम काफी हद तक कामयाब भी हुए थे लेकिन क्या पता था कि घोड़ों की इस भीड़ में तीन 'बहरुपिए गधे' भी धोखे से शामिल हो गए थे?जो चुपचाप मस्त हो चारा चबाने के बजाए बिना किसी परमिशन और इज़ाज़त के शोर मचाते हुए सरेआम हज़ार-हज़ार के नोटों की गड्डियों को लहरा रेंकने लगे।
"हद होती है नासमझी की भी"...
"स्सालों को!...हीरो बनने का चाव चढा हुआ था।अरे!...ये कोई फिल्लम नहीं जो यहाँ नायक ही जीतेगा ये कलयुग है कलयुग...यहाँ पाप की...अन्याय की हम जैसे बिचौलियों के माध्यम से जीत होती है।
"कुछ नहीं बिगाड़ पाओगे तुम हमारा"..
"देखा नहीं?कि हमारा अमरत्व प्राप्त चेला कैसे साफ मुकर गया मीडिया के तमाम फ्लैश मारते कैमरों के सामने और खुला चैलैंज दे डाला कि...
"अगर कोई भी आरोप साबित हो जाता है तो वह सार्वजनिक जीवन जीना छोड़ देगा"..
पहली बात तो ऐसी नौबत आएगी ही  नहीं और अगर कभी भूले-भटके आ भी गई तो उसमें इतने साल लग चुके होंगे कि किसी को कुछ याद नहीं रहना है।यू नो!...पब्लिक की यादाश्त बहुत कमज़ोर होती है।यहाँ गंभीर से गंभीर मुद्दा भी दो या चार महीने से ज़्यादा ज़िन्दा नहीं रहता।अब आप खुद ही देख लो ना कि....
"किसे याद है आग उगलते हुए 'तंदूर काण्ड' की?...या फिर....
"किसे याद है नरसिम्हाँ राव के नोट भरे सूटकेस की?"...
"किसे याद है बाल-कंकालों से लबालब भरे 'निठारी काण्ड' की?"या....
"किसे याद है हाँफ-हाँफ नाक में दम करता हुआ भोपाल का गैस काण्ड?"...
सच्चाई ये है मेरे दोस्त!...कि ये सारे काण्ड तो कब के पब्लिक की समृति से विलुप्त हो भ्रष्टाचार रूपी विशाल हवन कुण्ड की पवित्र और पावन अग्नि में स्वाहा हो गए और बाकियों की तरह इस घोटाले ने भी शांत हो जाना है और बस सबके दिल ओ दिमाग में बस यही याद रहना है कि.....  
"सिंह इज़ किंग"..."सिंह इज़ किंग"... "सिंह इज़ किंग"... "सिंह इज़ किंग
.....  .... .........

"बिचौलिया एकता".....
"ज़िन्दाबाद...ज़िन्दाबाद"...
"बिचौलिया एकता अमर रहे"...
"जय हिन्द"...

"भारत माता की जय"

Replies (4)

जनाब...ये कहानी मेरे द्वारा लिखी गई है और आपने इसे सिर्फ कॉपी-पेस्ट कर अपने नाम से पोस्ट कर दिया है। कहानी के साथ मेरे नाम को धुंधला किया हुआ है।मेरा निवेदन आपसे ये है कि आप कहानी के साथ  मेरे नाम को मोटे अक्षरों में दें और साथ ही मेरे ब्लॉग का पता दें जो कि इस प्रकार है https://hansteraho.blogspot.com

अगर आपके लिए ऐसा करना संभव नहीं है तो प्लीज़ कृपा करके के मेरी कहानी को हटा दें
मेरा फोन नम्बर है +919896397625 और +919810821361

राजीव तनेजा

Dear Mr Rajeev Taneja

Please Dont mind. I Like the story very much and I want to share with all the persons.

This story is Truly Yours, I dont want to take any creditability of this story,  thus I mention your name with this story.

Rajesh

 

 

 

"व्यथा-बिचौलियों की" 
 
***राजीव तनेजा***
मैँ भगवान को हाज़िर नाज़िर मान आज अपने पूर्ण होशोवास तथा  सही मानसिक संतुलन में अपने तमाम साथियों कि ओर से ये खुलेआम ऐलान करता हूँ कि मैँ एक बिचौलिया हूँ और लोगों के रुके काम...बिगड़े काम बनवा...पैसा कमाना हमारी  हॉबी...हमारा पेशा...हमारी फितरत है।ये कहने में हमें  किसी भी प्रकार का कोई संकोच..कोई ग्लानि या कोई शर्म नहीं कि ...कई बार अपने निहित स्वार्थों के चलते हम पहले दूसरों के बनते काम बिगड़वाते हैँ और बाद में अपना टैलैंट...अपना हुनर दिखा उन्हें  चमत्कारिक ढंग से हल करवाते हुए अपना...अपने दिमाग का लोहा मनवाते हैँ।दरअसल!..यही सब झोल-झाल हमारे जीने का..हमारी आजीविका का साधन हैँ।
"क्या कहा?"...
"हमें शर्म आनी चाहिए इस सब के लिए?"...
"हुँह!... "जिसने की शर्म ...उसके फूटे कर्म"...
"और वैसे भी जीविकोपार्जन में कैसी शर्म?
वैसे तो हम कई तरह के छोटे-बड़े काम करके अपना तथा अपने बच्चों का पेट पालते हैँ जैसे हम में से कोई प्रापर्टी डीलर है...

तो कोई शेयर दलाल...कोई सिमेंट-जिप्सम-कैमिकल वगैरा की दलाली से संतुष्ट है तो कोई....अनाज और फल-सब्ज़ियों से मगजमारी कर बावला बना बैठा है...कोई कोयले की दलाली में हाथ-मुँह सब काले करे  बैठा है ...तो कोई लोगों के ब्याह-शादी और निकाह करवाने जैसे पावन और पवित्र काम को छोड़ कमीशन बेसिस पे या फिर एकमुश्त रकम के बदले उनके तलाक करवाने के  ठेके ले अपनी तथा अपने परिवार की गुज़र-बरस कर रहा है।
हमारी व्यथा सुनिए कि हम में से कुछ को ना चाहते हुए भी मजबूरन ऐसे काम में हाथ डालना पड़ता है जिसका जिक्र यहाँ इस ब्लॉग पर यूँ ओपनली करना उचित नहीं क्योंकि आप पढने वाले और हम लिखने वाले दोनों के ही घरों में माँ-बहनें हैँ।

लेकिन क्या करें?...पैसा और ऐश..दोनों की लत हमें कुछ इस तरह की लग चुकी है कि लाख चाहने के बावजूद भी हमें कोई और काम-धन्धा रास ही नहीं आता।इन सब कामों के अलावा और भी बहुत से काम-धन्धे हैँ जिनमें हमारे कई संगी-साथी हाथ आज़माते हुए आगे बढने की कोशिश कर रहे हैँ लेकिन अगर सबकी लिस्ट यहीं देने लग गया तो इस पोस्ट के कई और पन्ने तो इसी सब में भर जाएंगे जो यकीनन आपको नागवार गुज़रेगा।लेकिन हाँ!...अगर आप फुर्सत में हैँ और तसल्ली से हमारे बारे में कोई शोध-पत्र या निबन्ध वगैरा तैयार करने की मुहिम में जुटे हैँ या जुटना चाहते हैँ तो आपका तहेदिल से स्वागत है। तो ऐसे में आप मुझे मेरी पर्सनल मेल पर मेल भेज कर मुझसे मेल कर सकते हैँ।मेरा ई.मेल आई.डी है दल्ला नम्बर वन @ बिचौलिया.कॉम  
हाँ!..आपको मेल आई.डी देने से याद आया कि आप लोगों ने ना जाने किस जन्म का बदला लेने की खातिर हमें नाहक बदनाम करते हुए  हमें 'बीच वाला'..'बिचौलिया'...'दल्ला'...'दलाल' इत्यादि नाम दिए हुए हैँ जबकि ना तो हमें ढंग से ताली बजाना आता है और ना ही उचक-उचक कर भौंडे तरीके से कमर मटकाना पसन्द है।ठीक है!...माना कि हम कई बार जल्दी बौखला के शोर शराबा शुरू कर देते हैँ ..हो हल्ला शुरू कर देते हैँ ...तो क्या सिर्फ इसी बिनाह पे आप हमें 'दल्ला' कहना शुरू कर देंगे?"...
क्या हम आपके साथ इज़्ज़त से...तमीज़ से पेश नहीं आते?हम आपको हमेशा जी...जी कह कर पुकारते हैँ...पूरी इज़्ज़त देते हैँ।जब आप हमारे पास आते हैँ तो ना चाहते हुए भी हम आपको चाय नाश्ते के लिए पूछते हैँ।वैसे ये अन्दरखाने की बात है कि अगर हम एक खर्चा करते हैँ तो उसके बदले सौ वसूलते भी हैँ।जब हम आपके लिए ना चाहते हुए भी इतना सबकुछ कर सकते हैँ तो क्या आप हमें इज़्ज़त से नहीं बुला सकते ?और अच्छे भले सलीकेदार नाम भी तो हैँ...हमारे लिए उनका प्रयोग भी तो किया जा सकता है जैसे... 'मीडिएटर'...'एडवाईज़र'....'कँसलटैंट' वगैरा...वगैरा...
आप कहते हैँ कि हम एक नम्बर के फ्राड हैँ और अपनी चिकनी-चुपड़ी बातों से आप लोगों को बहला-फुसला के अपना उल्लू सीधा करते हैँ।
चलो!..माना कि कई बार हम एक ही प्लाट या मकान को कई-कई बार बेच आप लोगों को चूना लगाने से भी नहीं चूकते हैँ।लेकिन क्या आपको डाक्टर कहता है कि आप हमारी मीठी-मीठे...चिकनी-चुपड़ी बातों में आ अपना धन...अपना पैसा..अपना चैन और सुकून गवाएँ?"
क्या कहा?..अनैतिक है ये?...
अरे!...अगर हम कम समय में अकृत पैसा इकट्ठा करना चाहते हैँ तो इसमें आखिर गलत ही क्या है? वैसे आप ये बताएँगे कि यहाँ कौन किसको नहीं लूट रहा है जो हम साधू-संत...महात्मा बनते हुए सबको बक्श दें?
क्या डाक्टर और कैमिस्ट फ्री सैम्पल वाली दवाईयों को मरीज़ों को चेप अँधा पैसा नहीं कमा रहे हैँ?या... प्राईवेट स्कूल वाले ही अभिभावकों को लूटने में कौन सी कसर छोड़ रहे हैँ?...
क्या हलवाई मिठाई के साथ डिब्बा तौल कर पब्लिक को फुद्दू नहीं बना रहे हैँ?..
या सरकारी कर्मचारी काम के समय को हँसी-ठट्ठे में उड़ा मुफ्त में तनख्वाह हासिल नहीं कर रहे हैँ?
किस-किस को रोकोगे तुम?...किस-किस को कोसोगे तुम?
अरे!..फफूंद है ये हमारे सिस्टम पर...जितनी आप साफ करोगे..उससे कई गुणा रातोंरात और उग कर फैल जाएगी।इसलिए ये सब बेकार की दिमागी कसरत और धींगामुश्ती छोड़ आप ध्यान से मेरी आगे की बात सुनें।...
 
हमारे काम करने ढंग आप जैसे सीधे-सरल लोगों के जैसा एकदम 'स्ट्रेट फॉरवर्ड' नहीं बल्कि आप सब से अलग...सबसे जुदा है।कई बार हम सूट-बूट पहन एकदम सोबर...जैंटल मैन टाईप 'मीडिएटर' का रूप धारण कर लेते हैँ... तो कभी समय की नज़ाकत को भांपते हुए 'एडवाईज़र'  वगैरा का भेष भी बदल लेते हैँ और कई बार अपनी औकात पे आते हुए एकदम नंगे हो...अपनी जात दिखाने से भी नहीं चूकते हैँ।
एक्चुअली!...हमें अपनी हर चाल को(सामने दिखाई देती सिचुऐशन के हिसाब से)..ऊपर से नीचे तक और...आगे से पीछे तक...अच्छी तरह सोचते-समझते हुए चलना होता है क्योंकि पासा पलटने में देर नहीं लगती। सच ही तो कह गए हैँ बड़े-बुज़ुर्ग कि....
"दुर्घटना से देरी भली" और....
 'सावधानी हटी तो दुर्घटना घटी'
कभी हम नरम रह कर क्रिटिकल सिचुएशनज़ को संभालते हैँ तो  कभी बौखला के गर्म होते हुए अपना काम साधते हैँ।दरअसल!...ये सब हमारे विवेक पर नहीं बल्कि सामने वाले के व्यवहार पर निर्भर करता है...डिपैंड करता है कि हम उसे अपना कौन सा रूप दिखाएँ?"..सरल वाला ठण्डा रूप?...या खौल कर उबाले खाता हुआ रौद्र रूप?
दरअसल पहले तो हम आराम से...प्यार से...मेल-जोल की ही बात करते हैँ और आपसी मनुहार से ही अपना काम निकालने की कोशिश करते हैँ लेकिन जब इस तरह के हमारे सारे प्रयास...सारी कोशिशें  फेल हो जाती हैँ या  विफल कर दी जाती हैँ।तब कोई और चारा ना देख हमें ना चाहते हुए भी कमीनियत पे उतरते हुए टुच्चेपन का सहारा लेना पड़ता है।
आज इस ब्लाग के माध्यम से हम ये 'शपथ-पत्र' भी साथ ही साथ दे देना चाहते हैँ कि... "हम 'बिचौलियों' की पूरी कौम हर प्रकार से भलीभांति स्वस्थ...तन्दुरस्त और हट्टी-कट्टी है"...
"क्या कहा?"...
"विश्वास नहीं है आपको हमारी इस काली ज़बान पर?"...
"अरे!..रोज़ाना ही तो लाखों-करोड़ों के सौदे हमारी इस ज़बान के नाम पर  ही स्वाहा हो इधर-उधर हो जाते हैँ।मतलब कि टूट  कर...बिखर कर छिन्न-भिन्न हो जाते हैँ।दरअसल!...ऐसा तब होता है जब हम अँधाधुँध कमाई के चलते...दारू के साथ-साथ...दौलत के नशे में भी चूर होते हैँ या फिर...बाज़ार में छाई तेज़ी के चलते....आने वाले मंदी के दौर को ठीक से भांप नहीं पाते हैँ।
"क्या कहा?...ज़बान से फिरना गलत बात है"...
"नामर्दानगी की निशानी है ये?...
अरे!...ऐसी हालत में अपनी ज़बान से फिर कर बैकआउट हो जाना ही बेहतर रहता है।अब इसमें कहाँ की समझदारी है?कि...हम इस कलमुँही ज़बान के चलते लाखों-करोड़ों का घाटा बिला वजह सहते फिरें?और ये आप इतनी जल्दी कैसे भूल गए कि आप ही ने तो खुद अपनी मर्ज़ी से ही हमारा नामकरण कर हमें 'बिचौलिए' का नाम दिया है और 'बिचौलिया' माने...बीच वाला याने के!..ना औरत और ना ही मर्द"
तो ऐसी हालत में मर्दानगी का तो सवाल ही पैदा नहीं होता है ना।"
वैसे एक बात कहूं?...
ये आप जो हम पर कोई ना कोई इलज़ाम लगाते रहते हैँ..थोपते रहते हैँ...वो सब निरे झूठ के पुलिन्दों के अलावा और कुछ नहीं है।अब आप हमें ये जो 'बिचौलिया-बिचौलिया' कह के चिढाते हैँ।तो ये मैँ आपको खुलेआम चैलैंज करता हूँ कि आप हमारे...हमारे बच्चों के जितना मन करे उतने 'एम.आर.आई' और  'डी.एन.ए. टैस्ट' करवा लें।इतने सब से तसल्ली ना हो तो बेशक 'सी.टी.स्कैन' और सौ दो सौ 'रंगीन एक्सरे' भी खिंचवा के देख लें।अगर हम में या...हमारी नस्ल में कोई कमी-बेसी निकल आए तो बेशक आप अभी के अभी गिरेबान पकड़ हमारा टेंटुआ दबा डालें।हम 'उफ' तक ना करेंगे।और ऐसा दावा हम किसी 'शिलाजीत' युक्त चूर्ण या फिर 'वियाग्रा' के रोज़ाना के सेवन के बल पर नहीं कह रहे हैँ।दरअसल ये सब चीज़ें तो हम ऐसे ही शौकिया इस्तेमाल कर लिया करते हैँ...जस्ट फॉर ए चेंज।

एक्चुअली!...ये जो चिंकी...मिंकी...टीना...मीना और नीना हैँ ना?...इस सब उठा-पटक और धींगामुश्ती की इतनी हैबिचुअल हो चुकी हैँ कि इन को बिना एक्स्ट्रा पावर या एक्स्ट्रा डोज़ के सैटिसफॉई करना मुश्किल ही नहीं बल्कि नामुमकिन होता है।
"जहाँ तक आपका आरोप है कि...हम मेहनत कर हलाल की खाने के बजाए आराम से बैठे-बैठे हराम की कमाई खाना चाहते हैँ।
तो इसके जवाब में बस यही कहना चाहूँगा कि आपका ये आरोप सरासर गलत और बेबुनियाद  है। दरअसल!...किसी भी देश का कोई भी कानून ये नहीं कहता कि पैसा कमाने के लिए पसीना बहाना ज़रूरी है।और जब बिना कोई काम-धाम किए...बैठे-बैठे सिर्फ ज़बान चलाने से ही हम पर लक्ष्मी मैय्या की फुल्ल-फुल्ल कृपा रहती है तो हम बेफाल्तू में क्यों धकड़पेल कर बावले होते फिरें?
अब अगर ऊपरवाले ने!...हमसे प्रसन्न हो हमें ये तेज़ कैंची के माफिक कचर-कचर करती जिव्हा रूपी नेमत बक्शी है तो क्यों ना इससे भरपूर फायदा उठाया जाए?और ये आपसे किस गधे ने कह दिया कि दलाली करना गलत बात है?...पाप है?
सही मायने हमसे हमसे बड़ा और हमसे सच्चा देशभग्त आपको पूरे हिन्दोस्तान में नहीं मिलेगा।
"क्यों ज़ोर का झटका धीरे से लगा ना?"...
अरे!...हाथ कँगन को आरसी क्या और पढे-लिखे को फारसी क्या?"....
एक्चुअली!...आजकल की पढी-लिखी जमात को भी फारसी पढनी नहीं आती है लेकिन मुहावरा तो मुहावरा होता है...मुँह में आ गया तो बोल दिया।...
खैर!...आप खुद ही देख लें कि कैसे हमने एक मिमियाते हुए शासक को गरज कर बरसना सिखाते हुए अपने देश को गंभीर संकट और खर्चे से बचाया।
अब आप कहेंगे कि..."
"कैसा शेर?"...
"कैसा मिमियाना?"और...
" कैसा खर्चा?"...
"अब ये जो अपने मनमोहिनी सूरत वाले 'मनमोहन सिंह' जी हैँ...वो सोनिया जी के सामने मिमियाते ही हैँ ना?"
अब आप खुद अपने दिल पे हाथ रख के बताएँ कि अच्छी-भली मिमिया कर चलती 'मनमोहन सरकार' से समर्थन वापिस ले उसे गिराने की साजिश रच क्या वामपंथियों ने सही किया?
"नहीं ना?"...
 
"सुनो!...वो पागल के बच्चे किसे प्रधानमंत्री बनाने चले थे?
    
अपनी हाथी वाली बहन जी को...और हिमाकत देखो कि कुल जमा तेरह सांसदों के बल पर  वो देश की कमान संभाल उसकी प्रधानी करने के ख्वाब पालने लगी थी।...
सोचो..सोचो!...सोचने में कौन सा टैक्स लग रहा है?
लेकिन क्या चंद मच्छरों के किसी कटखनी मक्खी के साथ मिलकर छींकने से कभी छींका फूटा है जो अब फूटेगा?...
हाँ!...लेकिन एक बात तो माननी पड़े इन बहन जी की कि इन्हें टैक्स वालों को बरगला बेनामी संपत्ति को दान में...गिफ्ट में मिली संपत्ति बता नामी बनाना अच्छी तरह आता है।

खैर !...जैसे ही हम में से एक को पता चला कि कलयुग में ऐसा घोर अनर्थ होने जा रहा है...तुरंत सक्रिय हो पहुँच गए मुलायम रूपी संजीवनी अमरबेल ले कर कि...

"बाल ना बांका कर सकेगा जो वामपंथ बैरी होय"...
"जाको राखे साईयाँ...मार सकै ना कोय"
"बस आते ही उन्होंने इसको...उसको...सबको संभालने की जिम्मेदारी अपने ऊपर ली और जोर-शोर से जोड़-तोड़ की मुहिम में जुट गए।नतीजा आपके सामने है...जीजान की मेहनत और तिकड़मबाजी ने सही में बिना 'नवजोत सिंह सिद्धू'(भाजपा) के ये सिद्ध कर दिखाया कि "सिंह इज़ किंग"
अब आप कहेंगे कि..."इस सब जोड़-जुगाड़ से फायदा क्या हुआ?"...
"वो तमाम छोटे-बड़े  टीवी चैनलों पर जो खचाखच भरे सभा मंडप में बार-बार हज़ार-हज़ार के नोटों की गड्डियाँ गड्डमड्ड होती दीख रही थी...उसका क्या?"
"अब क्या बताऊँ?"...
"हमने तो अच्छी तरह से जाँच-परख सिर्फ और सिर्फ असली 'अरबी नस्ल के घोड़ों पर ही चारा फैंका था और उन्हें रिझाने में हम काफी हद तक कामयाब भी हुए थे लेकिन क्या पता था कि घोड़ों की इस भीड़ में तीन 'बहरुपिए गधे' भी धोखे से शामिल हो गए थे?जो चुपचाप मस्त हो चारा चबाने के बजाए बिना किसी परमिशन और इज़ाज़त के शोर मचाते हुए सरेआम हज़ार-हज़ार के नोटों की गड्डियों को लहरा रेंकने लगे।
"हद होती है नासमझी की भी"...
"स्सालों को!...हीरो बनने का चाव चढा हुआ था।अरे!...ये कोई फिल्लम नहीं जो यहाँ नायक ही जीतेगा ये कलयुग है कलयुग...यहाँ पाप की...अन्याय की हम जैसे बिचौलियों के माध्यम से जीत होती है।
"कुछ नहीं बिगाड़ पाओगे तुम हमारा"..
"देखा नहीं?कि हमारा अमरत्व प्राप्त चेला कैसे साफ मुकर गया मीडिया के तमाम फ्लैश मारते कैमरों के सामने और खुला चैलैंज दे डाला कि...
"अगर कोई भी आरोप साबित हो जाता है तो वह सार्वजनिक जीवन जीना छोड़ देगा"..
पहली बात तो ऐसी नौबत आएगी ही  नहीं और अगर कभी भूले-भटके आ भी गई तो उसमें इतने साल लग चुके होंगे कि किसी को कुछ याद नहीं रहना है।यू नो!...पब्लिक की यादाश्त बहुत कमज़ोर होती है।यहाँ गंभीर से गंभीर मुद्दा भी दो या चार महीने से ज़्यादा ज़िन्दा नहीं रहता।अब आप खुद ही देख लो ना कि....
"किसे याद है आग उगलते हुए 'तंदूर काण्ड' की?...या फिर....
"किसे याद है नरसिम्हाँ राव के नोट भरे सूटकेस की?"...
"किसे याद है बाल-कंकालों से लबालब भरे 'निठारी काण्ड' की?"या....
"किसे याद है हाँफ-हाँफ नाक में दम करता हुआ भोपाल का गैस काण्ड?"...
सच्चाई ये है मेरे दोस्त!...कि ये सारे काण्ड तो कब के पब्लिक की समृति से विलुप्त हो भ्रष्टाचार रूपी विशाल हवन कुण्ड की पवित्र और पावन अग्नि में स्वाहा हो गए और बाकियों की तरह इस घोटाले ने भी शांत हो जाना है और बस सबके दिल ओ दिमाग में बस यही याद रहना है कि.....  
"सिंह इज़ किंग"..."सिंह इज़ किंग"... "सिंह इज़ किंग"... "सिंह इज़ किंग
.....  .... .........

"बिचौलिया एकता".....
"ज़िन्दाबाद...ज़िन्दाबाद"...
"बिचौलिया एकता अमर रहे"...
"जय हिन्द"...

"भारत माता की जय"

______________________________________________________________________________

This story was written by Mr. rajeev Taneje at https://hansteraho.blogspot.com

 

Originally posted by :Guest
" saale khud to likh nahe sakta aur doosro ke copy kerta he.. SHaRAM aane chaiye tujhe... saale doosro ke mahenat ko apna banata he.. khud likh ker dhek kitna dum lagta he.. ager thodi se bhe tujh me sharam aur laaj hogi to tu ye kahani yahan se hata dega aur jisne ye likhe he usse mafi mangega.. uske kaam ke tareef ker.. chori nahe... "


 

Dear

Please Do not use such type of language, This copy paste is only to share the true story of current political scenario and I just want to share this with all of the fourm members.

I have mentioned writers name in the story. so please don't say so.

I want to say sorry to the writer if he heart. but I doesn't mean that.

 


CCI Pro

Leave a Reply

Your are not logged in . Please login to post replies

Click here to Login / Register