11 Oct 2009, 2116 hrs IST,पीटीआई
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नई दिल्ली ।। हाल ही में अमेरिकी राष्ट्रपति बराक ओबामा को शांति का नोबेल पुरस्कार दिया गया। बराक खुद को गांधी का अनुयायी कहते हैं।
गांधी को 1935, 1938, 1939, 1947 और जनवरी 1948 में उनकी शहादत से पहले इस नोबेल के लिए नॉमिनेट भी किया गया। इतना ही नहीं, वह तीन बार इसके लिए शॉर्ट लिस्ट भी हुए, लेकिन हर बार नोबेल कमिटी के पास उन्हें सम्मानित न करने का एक से बढ़कर एक बहाना था। एक बार कमिटी का मानना था, गांधी न तो सही मायनों में राजनीतिज्ञ हैं और न ही किसी इंटरनैशनल लॉ के संस्थापक, वह न तो मानवतावादी राहतकर्मी ही हैं और न किसी इंटरनैशनल पीस कांग्रेस के ऑर्गनाइजर।
पहली बार के नॉमिनेशन में उनकी तारीफ तो की गई, लेकिन साथ ही कमिटी के अडवाइजर प्रोफेसर जैकब वॉर्ममुलर का कहना था, 'उनकी नीतियों में तीखे मोड़ हैं जिन्हें उनके मानने वाले मुश्किल से समझा पाते हैं। वह स्वतंत्रता सेनानी भी हैं, तानाशाह भी, आदर्शवादी भी हैं और राष्ट्रवादी भी। अक्सर वह मसीहा की तरह नजर आते हैं फिर अचानक आम राजनेता की तरह लगने लगते हैं। वह हमेशा शांतिवादी नहीं बने रहते। उन्हें यह पता होना चाहिए कि ब्रिटिश साम्राज्य के खिलाफ उनके कुछ अहिंसक आंदोलन हिंसा और आतंक में तब्दील हो सकते थे।' वॉर्ममुलर यहां 1920-21 के असहयोग आंदोलन के दौरान चौरी चौरा वाली घटना की ओर इशारा कर रहे थे। वॉर्ममुलर का तो यहां तक कहना था कि गांधी कुछ ज्यादा ही भारतीय राष्ट्रवादी थे। उनके शब्दों में, 'कोई भी कह सकता है कि साउथ अफ्रीका में उनका संघर्ष केवल भारतीयों के लिए था न कि अश्वेतों के लिए, जिनकी जिंदगी और भी बदतर थी।' भारत को आजादी मिलने के बाद 1947 में गांधी दूसरी बार शॉर्ट लिस्ट हुए। उन्हें नामित किया था गोविंद वल्लभ पंत और बी. जी. खेर ने। इस बार नोबेल पैनल के चेयरमैन गुन्नर जॉन ने लिखा, यह सच है कि गांधी नॉमिनेट हुए लोगों में सबसे महान हस्ती हैं। लेकिन हमें यह भी याद रखना चाहिए कि वह सिर्फ शांति दूत नहीं बल्कि पहले और सबसे ज्यादा एक देशभक्त थे। इससे भी ज्यादा हमें यह याद रखना चाहिए कि वह इतने भोले नहीं थे। वह एक बेहतरीन जूरिस्ट और एक वकील थे। आखिरी बार गांधी को शॉर्ट लिस्ट किया गया 1948 में। इसी साल वह शहीद हो गए। अब नोबेल पैनल को गंभीरता से सोचना पड़ा कि क्या उन्हें मरणोपरांत सम्मानित किया जा सकता है। बाद में कमिटी ने फैसला किया कि कोई भी वाजिब उम्मीदवार न होने की वजह से यह सम्मान किसी को नहीं दिया जाए। नोबेल प्राइज के उस समय के नियमों के हिसाब से गांधी को मरणोपरांत यह सम्मान दिया जा सकता था। लेकिन, इस फिर कुछ दिलचस्प सवाल उठाए गए- जैसे, गांधी किसी संगठन से संबंधित नहीं थे। उन्होंने न कोई संपत्ति छोड़ी न कोई वसीयत, उनकी पुरस्कार राशि कौन ग्रहण करेगा। |
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