kya kahein....

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क्या कहें...........

बात महफ़िल में चल रही है कही,

रात लड़की टहल रही थी कही,

 

मिल गया लोगों को चर्चा का विषय ,

इंसानियत खुद ही जल रही है कही,

 

क्या हुआ ,क्यों हुआ अनजान रहा,

अन्याय ,न्याय को छल रही है कही,

 

आयें आगे तो न्याय के रक्षक ,

आग पे दाल  गल रही है कही,

 

कहने को हाँ जगा आवाम मगर,

रात करवट बदल रही है कही,

 

ढोल -डफली से कई राग उठे,

सच की जब शाम ढल रही है कही,

 

हुआ पहले भी था,और हो है रहा,

सच का परिचय बदल रहा है कही,

 

झूठ -लालच के ताप पे यारों,

सच की फिर बर्फ गल रही है कही ...

कर्टिसी-ओम कुमार

Replies (5)

इंसानियत खुद ही जल रही है कही

Very Well Said!!

gud1 thks for scrap

yes

yes

good......................


CCI Pro

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