Easy Office

Kavita Sangrah.......

Page no : 4

CMA. CS. Sanjay Gupta ("PROUD TO BE AN INDIAN")   (114215 Points)
Replied 01 November 2010

Originally posted by : SAN...


I DON’T KNOW WHAT I’M DOING

EXAMS STRESSED ME OUT

AND I DON’T KNOW WHERE I’M GOING

PRESSURE TEARS ME APART

BUT WHEN I LOOK INSIDE

MY CONFIDENCE IS SOMEWHERE HIDE

AND I HAVE TO KEEP IT BESIDE……………………………

 

I HAVE TO MAKE IT FAST

AND NEVER KEEP IT FOR LAST

I HAVE TO PULL OFF MY SOCKS

AND I HAVE TO FLY LIKE HAWKS

I HAVE TO FLOW LIKE A BROOK

AND NEVER TRAPPED IN EXAMS HOOK

I HAVE TO BE STRONG

SO NOTHING GOES WRONG

I HAVE TO CRACK IT OUT

AND HAVE TO SAID IT LOUD

THAT………………………

I WILL GIVE MY BEST

LEAVE BEHIND THE REST

I WILL PROVE MYSELF

WITHOUT SOMEONES HELP

I HAVE TO TELL THE EXAMS ………….OHHHHHHHH….

I’M NOT AFRAID OF YOU………………….

 

I’M READY TO FACE IT

AND STAY OUT OF THE PIT

I WILL FOLLOW MY HEART

I KNOW I’M SMART

I WILL WORK IT OUT

AND GET MY GOAL

I WILL DANCE ALONG

AND ROCK AND ROLL

I HAVE TO CHILL OUT

AND SAID IT LOUD

THAT………….

I WILL GIVE MY BEST

LEAVE BEHIND THE REST

I WILL PROVE MYSELF

WITHOUT SOMEONES HELP

I HAVE TO TELL THE EXAMS ………….OHHHHHHHH….

I’M NOT AFRAID OF YOU………………….

SO ALL YOU GUYS OUT THERE

COME HERE

AND TELL THE WORLD

THAT YOU ARE SOMETHING

BETTER THAN ANYTHING

JUST FOLLOW YOURSELF……………….

AND TELL THE EXAMS ………OHHHHHHHH….

I’M NOT AFRAID OF YOU………………….

 


 

Awesome.......

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CMA. CS. Sanjay Gupta ("PROUD TO BE AN INDIAN")   (114215 Points)
Replied 09 November 2010

आशावाद का दीप जला.......

आशावाद का॰॰॰॰॰॰॰॰
॰॰॰॰॰॰॰॰॰ दीप जलाकर,
तू जिस राह॰॰॰॰॰॰॰॰॰॰
॰॰॰॰॰॰॰॰॰॰॰॰निकल जायेगा,
घुप्प अंधेरी॰॰॰॰॰॰॰॰॰
॰॰॰॰॰॰॰॰राहों को भी,
रोशन कर॰॰॰॰॰॰॰॰॰॰
॰॰॰॰॰॰॰॰॰॰कुछ कर जायेगा,
कर फैसला॰॰॰॰॰॰॰॰॰॰
॰॰॰॰॰॰॰॰॰॰॰॰॰मत घबराना
यह सोच॰॰॰॰॰॰॰॰॰
॰॰॰॰॰॰॰॰॰॰॰॰॰॰॰॰मेरा क्या होगा
इस पथपर॰॰॰॰॰॰॰॰॰॰
॰॰॰॰॰॰॰॰॰॰॰॰॰॰॰॰॰यह समझ ले तू
नहीं लील सकता॰॰॰॰॰॰॰॰॰॰
॰॰॰॰॰॰॰॰॰॰अंधेरा॰॰॰॰॰॰॰॰॰
॰॰॰॰॰॰॰॰॰वह भले ही हो
कितना गहरा॰॰॰॰॰॰॰॰॰॰
॰॰॰॰॰॰॰॰॰॰॰॰॰॰॰॰॰॰॰॰बस
मन में रखना॰॰॰॰॰॰॰॰॰
॰॰॰॰॰दृढ़ता और विश्वास
बढ़ा कदम आगे॰॰॰॰॰॰॰॰॰
॰॰॰॰॰॰॰॰॰॰॰देखना॰॰॰॰॰॰॰॰॰॰॰
॰॰॰॰॰॰॰॰॰॰॰टूट जायेगा
॰॰॰॰॰॰॰॰॰अहंकार॰॰॰॰॰॰॰॰॰॰॰॰॰
॰॰॰॰॰॰॰॰॰॰॰॰॰अंधकार का
और वह भी॰॰॰॰॰॰॰॰॰॰
॰॰॰॰॰॰॰॰॰नजर आयेगा
छोड़ अहंकार॰॰॰॰॰॰॰॰॰
॰॰॰॰॰॰॰॰॰उजाले में खो
जाने को॰॰॰॰॰॰॰॰॰॰॰
॰॰॰॰॰॰॰॰॰बढा कदम
बढा कदम॰॰॰॰॰॰॰॰
॰॰॰॰॰॰॰॰॰बढा कदम
देखना वह भी आ जायेगा
तेरे पीछे ॰॰॰॰॰॰॰॰॰॰॰
॰॰॰॰॰॰॰॰॰॰॰॰ उजाले में
॰॰॰॰॰॰॰ खो जाने को ॰॰॰॰॰॰॰


CMA. CS. Sanjay Gupta ("PROUD TO BE AN INDIAN")   (114215 Points)
Replied 09 November 2010

Khoobsurat Hain Wo Log

Khubsoorat hain wo Lub
Jo Pyaari Batein kertey hain

Khubsoorat hai wo Muskurahat
Jo Dusaron k Chehron per bhi Muskan saja de

Khubsoorat hai wo Dil
Jo kisi ke Dard ko Samjhey
Jo kisi ke Dard mai Tadpey

Khubsoorat hain wo Jazbat
Jo kisi ka Ehsaas karein

Khubsoorat hai wo Ehsaas
Jo kisi ke Dard mai dawa baney

Khubsoorat hain wo Batein
Jo kisi ka Dil na Dukhaein

Khubsoorat hain wo Aankhein
Jin mai Pakeezgi ho, Sharm-o-Haya ho

Khubsoorat hain wo Aansoo
Jo kisi ke Dard ko Mehsoos ker ke Beegh jaein

Khubsoorat hain wo Haath
Jo kisi ko Mushkil Waqt mai Thaam lein

Khubsoorat hain wo Qadam
Jo kisi ki Madad ke liye aagey badhein !!!!!

Khubsooart hai wo Soch
Jo kisi ke liye acha Sochey

Khubsoorat hai wo Insan

Jis ko KHUDA ne ye
Khubsoorati ada ki!!!


Rajesh (Service ) (7576 Points)
Replied 10 November 2010

 

पुष्प की अभिलाषा / माखनलाल चतुर्वेदी

चाह नहीं मैं सुरबाला के
गहनों में गूँथा जाऊँ,
चाह नहीं प्रेमी-माला में
बिंध प्यारी को ललचाऊँ,
चाह नहीं, सम्राटों के शव
पर, हे हरि, डाला जाऊँ
चाह नहीं, देवों के शिर पर,
चढ़ूँ भाग्य पर इठलाऊँ!
मुझे तोड़ लेना वनमाली!
उस पथ पर देना तुम फेंक,
मातृभूमि पर शीश चढ़ाने
जिस पथ जावें वीर अनेक।


Rajesh (Service ) (7576 Points)
Replied 10 November 2010

 

झांसी की रानी / सुभद्राकुमारी चौहान


सिंहासन हिल उठे राजवंशों ने भृकुटी तानी थी,
बूढ़े भारत में भी आई फिर से नयी जवानी थी,
गुमी हुई आज़ादी की कीमत सबने पहचानी थी,
दूर फिरंगी को करने की सबने मन में ठानी थी।

चमक उठी सन सत्तावन में, वह तलवार पुरानी थी,
बुंदेले हरबोलों के मुँह हमने सुनी कहानी थी,
खूब लड़ी मर्दानी वह तो झाँसी वाली रानी थी।।

कानपूर के नाना की, मुँहबोली बहन छबीली थी,
लक्ष्मीबाई नाम, पिता की वह संतान अकेली थी,
नाना के सँग पढ़ती थी वह, नाना के सँग खेली थी,
बरछी, ढाल, कृपाण, कटारी उसकी यही सहेली थी।

वीर शिवाजी की गाथायें उसको याद ज़बानी थी,
बुंदेले हरबोलों के मुँह हमने सुनी कहानी थी,
खूब लड़ी मर्दानी वह तो झाँसी वाली रानी थी।।

लक्ष्मी थी या दुर्गा थी वह स्वयं वीरता की अवतार,
देख मराठे पुलकित होते उसकी तलवारों के वार,
नकली युद्ध-व्यूह की रचना और खेलना खूब शिकार,
सैन्य घेरना, दुर्ग तोड़ना ये थे उसके प्रिय खिलवाड़|

महाराष्ट्र-कुल-देवी उसकी भी आराध्य भवानी थी,
बुंदेले हरबोलों के मुँह हमने सुनी कहानी थी,
खूब लड़ी मर्दानी वह तो झाँसी वाली रानी थी।।

हुई वीरता की वैभव के साथ सगाई झाँसी में,
ब्याह हुआ रानी बन आई लक्ष्मीबाई झाँसी में,
राजमहल में बजी बधाई खुशियाँ छाई झाँसी में,
सुघट बुंदेलों की विरुदावलि-सी वह आयी थी झांसी में,

चित्रा ने अर्जुन को पाया, शिव को मिली भवानी थी,
बुंदेले हरबोलों के मुँह हमने सुनी कहानी थी,
खूब लड़ी मर्दानी वह तो झाँसी वाली रानी थी।।

उदित हुआ सौभाग्य, मुदित महलों में उजियाली छाई,
किंतु कालगति चुपके-चुपके काली घटा घेर लाई,
तीर चलाने वाले कर में उसे चूड़ियाँ कब भाई,
रानी विधवा हुई, हाय! विधि को भी नहीं दया आई।

निसंतान मरे राजाजी रानी शोक-समानी थी,
बुंदेले हरबोलों के मुँह हमने सुनी कहानी थी,
खूब लड़ी मर्दानी वह तो झाँसी वाली रानी थी।।

बुझा दीप झाँसी का तब डलहौज़ी मन में हरषाया,
राज्य हड़प करने का उसने यह अच्छा अवसर पाया,
फ़ौरन फौजें भेज दुर्ग पर अपना झंडा फहराया,
लावारिस का वारिस बनकर ब्रिटिश राज्य झाँसी आया।

अश्रुपूर्ण रानी ने देखा झाँसी हुई बिरानी थी,
बुंदेले हरबोलों के मुँह हमने सुनी कहानी थी,
खूब लड़ी मर्दानी वह तो झाँसी वाली रानी थी।।

अनुनय विनय नहीं सुनती है, विकट शासकों की माया,
व्यापारी बन दया चाहता था जब यह भारत आया,
डलहौज़ी ने पैर पसारे, अब तो पलट गई काया,
राजाओं नव्वाबों को भी उसने पैरों ठुकराया।

रानी दासी बनी, बनी यह दासी अब महरानी थी,
बुंदेले हरबोलों के मुँह हमने सुनी कहानी थी,
खूब लड़ी मर्दानी वह तो झाँसी वाली रानी थी।।

छिनी राजधानी दिल्ली की, लखनऊ छीना बातों-बात,
कैद पेशवा था बिठूर में, हुआ नागपुर का भी घात,
उदैपुर, तंजौर, सतारा,कर्नाटक की कौन बिसात?
जब कि सिंध, पंजाब ब्रह्म पर अभी हुआ था वज्र-निपात।

बंगाले, मद्रास आदि की भी तो वही कहानी थी,
बुंदेले हरबोलों के मुँह हमने सुनी कहानी थी,
खूब लड़ी मर्दानी वह तो झाँसी वाली रानी थी।।

रानी रोयीं रनिवासों में, बेगम ग़म से थीं बेज़ार,
उनके गहने कपड़े बिकते थे कलकत्ते के बाज़ार,
सरे आम नीलाम छापते थे अंग्रेज़ों के अखबार,
'नागपुर के ज़ेवर ले लो लखनऊ के लो नौलख हार'।

यों परदे की इज़्ज़त परदेशी के हाथ बिकानी थी,
बुंदेले हरबोलों के मुँह हमने सुनी कहानी थी,
खूब लड़ी मर्दानी वह तो झाँसी वाली रानी थी।।

कुटियों में भी विषम वेदना, महलों में आहत अपमान,
वीर सैनिकों के मन में था अपने पुरखों का अभिमान,
नाना धुंधूपंत पेशवा जुटा रहा था सब सामान,
बहिन छबीली ने रण-चण्डी का कर दिया प्रकट आहवान।

हुआ यज्ञ प्रारम्भ उन्हें तो सोई ज्योति जगानी थी,
बुंदेले हरबोलों के मुँह हमने सुनी कहानी थी,
खूब लड़ी मर्दानी वह तो झाँसी वाली रानी थी।।

महलों ने दी आग, झोंपड़ी ने ज्वाला सुलगाई थी,
यह स्वतंत्रता की चिनगारी अंतरतम से आई थी,
झाँसी चेती, दिल्ली चेती, लखनऊ लपटें छाई थी,
मेरठ, कानपुर,पटना ने भारी धूम मचाई थी,

जबलपुर, कोल्हापुर में भी कुछ हलचल उकसानी थी,
बुंदेले हरबोलों के मुँह हमने सुनी कहानी थी,
खूब लड़ी मर्दानी वह तो झाँसी वाली रानी थी।।

इस स्वतंत्रता महायज्ञ में कई वीरवर आए काम,
नाना धुंधूपंत, ताँतिया, चतुर अज़ीमुल्ला सरनाम,
अहमदशाह मौलवी, ठाकुर कुँवरसिंह सैनिक अभिराम,
भारत के इतिहास गगन में अमर रहेंगे जिनके नाम।

लेकिन आज जुर्म कहलाती उनकी जो कुरबानी थी,
बुंदेले हरबोलों के मुँह हमने सुनी कहानी थी,
खूब लड़ी मर्दानी वह तो झाँसी वाली रानी थी।।

इनकी गाथा छोड़, चले हम झाँसी के मैदानों में,
जहाँ खड़ी है लक्ष्मीबाई मर्द बनी मर्दानों में,
लेफ्टिनेंट वाकर आ पहुँचा, आगे बढ़ा जवानों में,
रानी ने तलवार खींच ली, हुया द्वंद असमानों में।

ज़ख्मी होकर वाकर भागा, उसे अजब हैरानी थी,
बुंदेले हरबोलों के मुँह हमने सुनी कहानी थी,
खूब लड़ी मर्दानी वह तो झाँसी वाली रानी थी।।

रानी बढ़ी कालपी आई, कर सौ मील निरंतर पार,
घोड़ा थक कर गिरा भूमि पर गया स्वर्ग तत्काल सिधार,
यमुना तट पर अंग्रेज़ों ने फिर खाई रानी से हार,
विजयी रानी आगे चल दी, किया ग्वालियर पर अधिकार।

अंग्रेज़ों के मित्र सिंधिया ने छोड़ी राजधानी थी,
बुंदेले हरबोलों के मुँह हमने सुनी कहानी थी,
खूब लड़ी मर्दानी वह तो झाँसी वाली रानी थी।।

विजय मिली, पर अंग्रेज़ों की फिर सेना घिर आई थी,
अबके जनरल स्मिथ सम्मुख था, उसने मुहँ की खाई थी,
काना और मंदरा सखियाँ रानी के संग आई थी,
युद्ध श्रेत्र में उन दोनों ने भारी मार मचाई थी।

पर पीछे ह्यूरोज़ आ गया, हाय! घिरी अब रानी थी,
बुंदेले हरबोलों के मुँह हमने सुनी कहानी थी,
खूब लड़ी मर्दानी वह तो झाँसी वाली रानी थी।।

तो भी रानी मार काट कर चलती बनी सैन्य के पार,
किन्तु सामने नाला आया, था वह संकट विषम अपार,
घोड़ा अड़ा, नया घोड़ा था, इतने में आ गये सवार,
रानी एक, शत्रु बहुतेरे, होने लगे वार-पर-वार।

घायल होकर गिरी सिंहनी उसे वीर गति पानी थी,
बुंदेले हरबोलों के मुँह हमने सुनी कहानी थी,
खूब लड़ी मर्दानी वह तो झाँसी वाली रानी थी।।

रानी गई सिधार चिता अब उसकी दिव्य सवारी थी,
मिला तेज से तेज, तेज की वह सच्ची अधिकारी थी,
अभी उम्र कुल तेइस की थी, मनुज नहीं अवतारी थी,
हमको जीवित करने आयी बन स्वतंत्रता-नारी थी,

दिखा गई पथ, सिखा गई हमको जो सीख सिखानी थी,
बुंदेले हरबोलों के मुँह हमने सुनी कहानी थी,
खूब लड़ी मर्दानी वह तो झाँसी वाली रानी थी।।

जाओ रानी याद रखेंगे ये कृतज्ञ भारतवासी,
यह तेरा बलिदान जगावेगा स्वतंत्रता अविनासी,
होवे चुप इतिहास, लगे सच्चाई को चाहे फाँसी,
हो मदमाती विजय, मिटा दे गोलों से चाहे झाँसी।

तेरा स्मारक तू ही होगी, तू खुद अमिट निशानी थी,
बुंदेले हरबोलों के मुँह हमने सुनी कहानी थी,
खूब लड़ी मर्दानी वह तो झाँसी वाली रानी थी।।

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Rajesh (Service ) (7576 Points)
Replied 10 November 2010

झाँसी की रानी की समाधि पर / सुभद्राकुमारी चौहान


इस समाधि में छिपी हुई है, एक राख की ढेरी |
जल कर जिसने स्वतंत्रता की, दिव्य आरती फेरी ||
यह समाधि यह लघु समाधि है, झाँसी की रानी की |
अंतिम लीलास्थली यही है, लक्ष्मी मरदानी की ||

यहीं कहीं पर बिखर गई वह, भग्न-विजय-माला-सी |
उसके फूल यहाँ संचित हैं, है यह स्मृति शाला-सी |
सहे वार पर वार अंत तक, लड़ी वीर बाला-सी |
आहुति-सी गिर चढ़ी चिता पर, चमक उठी ज्वाला-सी |

बढ़ जाता है मान वीर का, रण में बलि होने से |
मूल्यवती होती सोने की भस्म, यथा सोने से ||
रानी से भी अधिक हमे अब, यह समाधि है प्यारी |
यहाँ निहित है स्वतंत्रता की, आशा की चिनगारी ||

इससे भी सुन्दर समाधियाँ, हम जग में हैं पाते |
उनकी गाथा पर निशीथ में, क्षुद्र जंतु ही गाते ||
पर कवियों की अमर गिरा में, इसकी अमिट कहानी |
स्नेह और श्रद्धा से गाती, है वीरों की बानी ||

बुंदेले हरबोलों के मुख हमने सुनी कहानी |
खूब लड़ी मरदानी वह थी, झाँसी वाली रानी ||
यह समाधि यह चिर समाधि है , झाँसी की रानी की |
अंतिम लीला स्थली यही है, लक्ष्मी मरदानी की ||

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Rajesh (Service ) (7576 Points)
Replied 10 November 2010

 

खट्टी चटनी जैसी माँ / निदा फ़ाज़ली


बेसन की सोंधी रोटी पर खट्टी चटनी जैसी माँ ,

याद आता है चौका-बासन, चिमटा फुँकनी जैसी माँ ।


बाँस की खुर्री खाट के ऊपर हर आहट पर कान धरे ,

आधी सोई आधी जागी थकी दुपहरी जैसी माँ ।


चिड़ियों के चहकार में गूँजे राधा-मोहन अली-अली ,

मुर्गे की आवाज़ से खुलती, घर की कुंड़ी जैसी माँ ।


बीवी, बेटी, बहन, पड़ोसन थोड़ी-थोड़ी सी सब में ,

दिन भर इक रस्सी के ऊपर चलती नटनी जैसी मां ।


बाँट के अपना चेहरा, माथा, आँखें जाने कहाँ गई ,

फटे पुराने इक अलबम में चंचल लड़की जैसी माँ ।

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(Guest)

...Death of A Loser...

 

I follow my footsteps of long ago ...,
Covered in that misty fog
That cloaks reasoning,
Making paths choice left instead of right,
A boy that thought he was a man as
Refusal portrayed weakness,
Be mighty join the gang
Be a part of the fateful start.
Sniff a drug that kills realities bug
“You stay in the car with your gun”,
The other three enter the bank
Shouts shattering glass, bang a gun goes off,
Running swearing jumping into the car
One two three, a policeman grabs the door,
I raise my gun...bang oh Christ what have I done,
Tyres burn we disappear into the sun.
I follow my footsteps of long ago
The blind steps of hindsight,

“A roast chicken dinner please
That will do maybe a little ice-cream”,
No smiles solemn looks
Fear seeps thru my body,
As I wait for my last supper
I’m at the end of the wrong road,
Oh Christ what have I done!

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Micky Mouse (student) (186 Points)
Replied 15 November 2010

माँ मेरी लोरी की पोटली,
गुड़ जैसी!!

मिट्टी पे दूब-सी,
कुहे में धूप-सी,
माँ की जाँ है,
रातों में रोशनी,
ख्वाबों में चाशनी,
माँ तो माँ है,
ममता माँ की, नैया की नोंक-सी,
छलके दिल से, पत्तों में झोंक-सी।

माँ मेरी पूजा की आरती,
घी तुलसी!!

आँखों की नींद-सी,
हिंदी-सी , हिंद-सी,
माँ की जाँ है,
चक्की की कील है,
मांझा है, ढील है,
माँ तो माँ है।
चढती संझा, चुल्हे की धाह है,
उठती सुबह,फूर्त्ति की थाह है।

माँ मेरी भादो की दुपहरी,
सौंधी-सी!

चाँदी के चाँद-सी,
माथे पे माँग-सी,
माँ की जाँ है,
बेटों की जिद्द है,
बेटी की रीढ है,
माँ तो माँ है।
भटका दर-दर, शहरों मे जब कभी,
छत से तकती, माँ की दुआ दिखी।

माँ मेरी भोली सी मालिनी
आँगन की!

अपनों की जीत में,
बरसों की रीत में,
माँ की जाँ है,
प्यारी-सी ओट दे,
थामे है चोट से,
माँ तो माँ है,
चंपई दिन में,छाया-सी साथ है,
मन की मटकी, मैया के हाथ है।

माँ मेरी थोड़ी-सी बावली,
रूत जैसी!

मेरी हीं साँस में,
सुरमई फाँस में,
माँ की जाँ है,
रिश्तों की डोर है,
हल्की-सी भोर है,
माँ तो माँ है,
रब की रब है, काबा है,धाम है,
झुकता रब भी, माँ ऎसा नाम है।

                                -विश्व दीपक ’तन्हा’

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Micky Mouse (student) (186 Points)
Replied 15 November 2010

 

आँधियों से न कोई गिला कीजिए

लौ दिए की बढ़ाते  रहा कीजिए

 

सर्द रिश्ते भी इक दिन पिघल जाएगी

गुफ़्तगू का कोई सिलसिला कीजिए

 

दर्द-ए-जानां भी है,रंज-ए-दौरां भी है

क्या ज़रूरी है ख़ुद  फ़ैसला कीजिए

 

मैं वफ़ा की  दुहाई तो देता नहीं

आप जितनी भी  चाहे जफ़ा कीजिए

 

हमवतन आप हैं ,हमज़बां आप हैं

दो दिलों में न यूँ फ़ासला कीजिए

 

               आप गै़रों से इतने जो मस्रूफ़ हैं

काश !आनन्दसे भी मिला कीजिए

 

-आनन्द.पाठक

 

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(Guest)

Har baar dil se yeh paigaam aaye
jubaaN kholu to tera hi naam aaye|


Tum hi kyon bhaye dil ko kya malum
Jab nazron ke saamne haseen tamaam aaye||


Rajesh (Service ) (7576 Points)
Replied 16 November 2010

कभी धूप कभी छाँव / प्रदीप


सुख दुःख दोनों रहते जिसमें, जीवन है वो गाँव
कभी धूप कभी छाँव, कभी धूप तो कभी छाँव
भले भी दिन आते जगत में, बुरे भी दिन आते
कड़वे मीठे फल करम के यहाँ सभी पाते
कभी सीधे कभी उल्टे पड़ते अजब समय के पाँव
कभी धूप कभी छाँव, कभी धूप तो कभी छाँव
सुख दुःख दोनों रहते जिसमें, जीवन है वो गाँव

क्या खुशियाँ क्या गम, यह सब मिलते बारी बारी
मालिक की मर्ज़ी पे चलती यह दुनिया सारी
ध्यान से खेना जग नदिया में बन्दे अपनी नाव
कभी धूप कभी छाँव, कभी धूप तो कभी छाँव
सुख दुःख दोनों रहते जिसमें, जीवन है वो गाँव


Rajesh (Service ) (7576 Points)
Replied 16 November 2010

मेरा देश जल रहा, कोई नहीं बुझानेवाला / शिवमंगल सिंह ‘सुमन’


 

 

घर-आंगन में आग लग रही ।
सुलग रहे वन -उपवन,
दर दीवारें चटख रही हैं
जलते छप्पर- छाजन ।
तन जलता है , मन जलता है
जलता जन-धन-जीवन,
एक नहीं जलते सदियों से
जकड़े गर्हित बंधन ।
दूर बैठकर ताप रहा है,
आग लगानेवाला,
मेरा देश जल रहा,
कोई नहीं बुझानेवाला।

 

 


भाई की गर्दन पर
भाई का तन गया दुधारा
सब झगड़े की जड़ है
पुरखों के घर का बँटवारा
एक अकड़कर कहता
अपने मन का हक ले लेंगें,
और दूसरा कहता तिल
भर भूमि न बँटने देंगें ।
पंच बना बैठा है घर में,
फूट डालनेवाला,
मेरा देश जल रहा,
कोई नहीं बुझानेवाला ।

 

 

दोनों के नेतागण बनते
अधिकारों के हामी,
किंतु एक दिन को भी
हमको अखरी नहीं गुलामी ।
दानों को मोहताज हो गए
दर-दर बने भिखारी,
भूख, अकाल, महामारी से
दोनों की लाचारी ।
आज धार्मिक बना,
धर्म का नाम मिटानेवाला
मेरा देश जल रहा,
कोई नहीं बुझानेवाला ।

 

 

होकर बड़े लड़ेंगें यों
यदि कहीं जान मैं लेती,
कुल-कलंक-संतान
सौर में गला घोंट मैं देती ।
लोग निपूती कहते पर
यह दिन न देखना पड़ता,
मैं न बंधनों में सड़ती
छाती में शूल न गढ़ता ।
बैठी यही बिसूर रही माँ,
नीचों ने घर घाला,
मेरा देश जल रहा,
कोई नहीं बुझानेवाला ।

 

 

भगतसिंह, अशफाक,
लालमोहन, गणेश बलिदानी,
सोच रहें होंगें, हम सबकी
व्यर्थ गई कुरबानी
जिस धरती को तन की
देकर खाद खून से सींचा ,
अंकुर लेते समय उसी पर
किसने जहर उलीचा ।
हरी भरी खेती पर ओले गिरे,
पड़ गया पाला,
मेरा देश जल रहा,
कोई नहीं बुझानेवाला ।

 

 

जब भूखा बंगाल,
तड़पमर गया ठोककर किस्मत,
बीच हाट में बिकी
तुम्हारी माँ - बहनों की अस्मत।
जब कुत्तों की मौत मर गए
बिलख-बिलख नर-नारी ,
कहाँ कई थी भाग उस समय
मरदानगी तुम्हारी ।
तब अन्यायी का गढ़ तुमने
क्यों न चूर कर डाला,
मेरा देश जल रहा,
कोई नहीं बुझानेवाला।

 

 


पुरखों का अभिमान तुम्हारा
और वीरता देखी,
राम - मुहम्मद की संतानों !
व्यर्थ न मारो शेखी ।
सर्वनाश की लपटों में
सुख-शांति झोंकनेवालों !
भोले बच्चें, अबलाओ के
छुरा भोंकनेवालों !
ऐसी बर्बरता का
इतिहासों में नहीं हवाला,
मेरा देश जल रहा,
कोई नहीं बुझानेवाला ।

 

 

घर-घर माँ की कलख
पिता की आह, बहन का क्रंदन,
हाय , दूधमुँहे बच्चे भी
हो गए तुम्हारे दुश्मन ?
इस दिन की खातिर ही थी
शमशीर तुम्हारी प्यासी ?
मुँह दिखलाने योग्य कहीं भी
रहे न भारतवासी।
हँसते हैं सब देख
गुलामों का यह ढंग निराला ।
मेरा देश जल रहा,
कोई नहीं बुझानेवाला।

 

 


जाति-धर्म गृह-हीन
युगों का नंगा-भूखा-प्यासा,
आज सर्वहारा तू ही है
एक हमारी आशा ।
ये छल छंद शोषकों के हैं
कुत्सित, ओछे, गंदे,
तेरा खून चूसने को ही
ये दंगों के फंदे ।
तेरा एका गुमराहों को
राह दिखानेवाला ,
मेरा देश जल रहा,
कोई नहीं बुझानेवाला ।

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CMA. CS. Sanjay Gupta ("PROUD TO BE AN INDIAN")   (114215 Points)
Replied 24 November 2010

HARTA JO NAHI MUSHKILO SE KABHI,
JISKA MAQSAD HAI MANJIL KO PANA,
DHOOP MEIN DEKHKAR THODI SI CHHAYA,
JISNE SIKHA NAHI BAITH JANA,
AAG JISME "LAGAN" KI JALTI HAI,
"KAAAAAMYABI" USI KO MILTI HAI...




CMA. CS. Sanjay Gupta ("PROUD TO BE AN INDIAN")   (114215 Points)
Replied 24 November 2010

MUSHKILO SE BHAG JANA ASAN HOTA HAI,
HAR PEHLU ZINDAGI KA IMTIHAN HOTA HAI,
DARNE WALO KO MILTA NAHI KUCH ZINDAGI ME,
LADNE WALO K KADMO ME JAHAN HOTA HAI.......



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