Chanakya neeti

Rahul Sharma (----------) (8187 Points)

24 January 2012  

सभी रिश्ते व्यक्ति के जन्म के साथ ही बनते हैं। जिस घर-परिवार में हमारा जन्म हुआ है वहां से संबंधित सभी लोगों से हमारा रिश्ता स्वत: ही जुड़ जाता है। इन रिश्तों को तोडऩा या जोडऩा व्यक्ति के हाथों में नहीं रहता है। ये रिश्ते हमेशा ही बने रहते हैं। इन रिश्तों के अतिरक्ति एक रिश्ता है जो हम अपने व्यवहार से बनाते हैं, वह है मित्रता। मित्रता ही एकमात्र ऐसा रिश्ता है जो हम खुद जोड़ते हैं। मित्र हम स्वयं चुनते हैं। 

सच्चे मित्र ही हमें सभी परेशानियों से बचा लेते हैं और कठिन समय में मदद करते हैं। हमें कैसे मित्र चुनना चाहिए? इस संबंध में आचार्य चाणक्य ने कहा है कि जिस व्यक्ति में अपने परिवार का पालन पोषण करने की योग्यता ना हो, जो व्यक्ति अपनी गलती होने पर भी किसी से न डरता हो, जो व्यक्ति शर्म नहीं करता है, लज्जावान न हो, अन्य लोगों के लिए जिसमें उदारता का भाव न हो, जो इंसान त्यागशील नहीं है, वे मित्रता के योग्य नहीं कहे जा सकते।

चाणक्य के अनुसार यदि कोई व्यक्ति अपने परिवार का भरण-पोषण सिर्फ आलस्य और झूठे अभिमान की वजह से नहीं करते हैं। हमेशा जो व्यर्थ की बातों में समय नष्ट करते हैं। ऐसे लोगों से दूर ही रहना चाहिए। इसके अलावा जो लोग अपनी गलती होने पर भी किसी न डरे, विद्वान और वृद्धजन का आदर-सम्मान नहीं करते हैं। उनसे मित्रता नहीं करना चाहिए। जिन लोगों में लज्जा का गुण न हो, जो किसी भी गलत कार्य को करने में संकोच न करें, जो लज्जा हीन हो उनसे मित्रता नहीं करनी चाहिए। जिन लोगों में अन्य लोगों के लिए उदारता का गुण न हो वे भी मित्रता योग्य नहीं होते हैं। दूसरे के दुख पर उपहास करना, किसी की मदद न करने वालों से मित्रता न करें। इसके अलावा जो लोग त्याग की भावना नहीं रखते हो उनसे भी मित्रता नहीं करना चाहिए।