A Great Poem

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दीवारें न देंख - दुष्यंत कुमार

आज सडकों पर लिखे हैं सैकडों नारे न देख
घर अँधेरा देख तू  आकाश के तारे न देख

एक दरिया है यहाँ दूर तक फैला हुआ 
आज  अपने  बाजुओं को देख पतवारें न देख

अब यकीनन ठोस है धरती हकीकत की तरह
यह हकीकत देख लेकिन खौफ के मारे न देख

वे सहारे भी नहीं अब जंग लड़नी है तुझे
कट चुके जो हाथ उन हाथों मे तलवारें न देख

दिल को बहला ले इजाजत है मगर इतना न उड़
रोज सपने देख लेकिन इस कदर प्यारे न देख

ये धुंधलका है नज़र का तू महज मायूस है 
रोजनों को देख दीवारों में दीवारें न देंख

राख कितनी राख है चारों तरफ बिखरी हुई
राख मे चिंगारियां ही देख अंगारें न देख

Replies (2)

It is really nice poem

good and impressice specially CA students


CCI Pro

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