Regarding income from property

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श्रीमान जी
प्रॉपर्टी बेचने से होने वाले मुनाफे पर आयकर संबंधी रुल को विस्तार से समझाएं।
उदाहरणार्थ
यदि कोई व्यक्ति एक प्रॉपर्टी 10 लाख में खरीद कर कुछ समय बाद 17 लाख में बेच देता है तो उस टैक्स देनदारी क्या होगी?
धन्यवाद
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पुराना घर बेचने और नया घर खरीदने के बीच ज्यादा समय जहां आपकी टैक्स देनदारी में इजाफा कर सकता है, वहीं नया घर खरीदने के बाद उसे तुरंत बेच देना भी आपकी टैक्स देनदारी बढ़ा सकता है. इस हिसाब से जब आप घर बेचते हैं तो कैलेंडर पर भी नजर रखिए. अगर आपके घर बेचने की टाइमिंग सही नहीं हुई तो आपको काफी इनकम टैक्स चुकाना पड़ सकता है. इनकम टैक्स कानून के हिसाब से अगर प्रॉपर्टी खरीदने के तीन साल के अंदर बेच दिया जाय तो इससे होने वाले मुनाफे को शॉर्ट टर्म कैपिटल गेन (STCG) माना जाता है. घर बेचने से हुए मुनाफे की इस रकम को आपकी कुल आमदनी में जोड़ा जाएगा. और उसके बाद आपके टैक्स स्लैब के हिसाब से इस पर टैक्स वसूला जाएगा. इसका मतलब यह है कि अगर आप साल भर में 10 लाख रुपये से अधिक कमाते हैं और इनकम टैक्स स्लैब के हिसाब से 30% टैक्स चुकाने की कैटेगरी में आते हैं तो आपको प्रॉपर्टी बेचने पर हुए मुनाफे का 30 फीसदी टैक्स चुकाना पड़ेगा. इसे भी पढ़ें: ITR की ई-फाइलिंग में इन सेक्शन का रखें विशेष ध्यान, बचेंगे पैसे इसके साथ ही इनकम टैक्स कानून के हिसाब से अगर घर खरीदने के पांच वित्त वर्ष के खत्म होने से पहले ही बेच दिया जाता है तो इस पर आपको टैक्स लाभ से हाथ धोना पड़ सकता है. अगर आपने इनकम टैक्स कानून के सेक्शन 80C के तहत मूलधन भुगतान, स्टांप ड्यूटी और रजिस्ट्रेशन चार्ज पर टैक्स छूट क्लेम किया है तो वह लाभ भी आपको वापस करना पड़ेगा. आपने जिस वित्त वर्ष में घर बेचा है उस साल आपको इस रकम पर टैक्स चुकाना पड़ सकता है. आप सिर्फ सेक्शन 24B के तहत होम लोन के ब्याज पर ली गयी टैक्स छूट ही अपने पास रख पाएंगे. इनकम टैक्स के मौजूदा नियमों के हिसाब से टैक्स बचत के लिए जरूरी है कि अगर आप कोई प्रॉपर्टी खरीदते हैं तो उसे कम से कम तीन साल तक अपने पास रखें. अगर आप प्रॉपर्टी खरीदने के बाद तीन साल रखते हैं और फिर उसे बेचते हैं तो इससे होने वाला मुनाफा लॉन्ग टर्म कैपिटल गेन (LTCG) माना जाएगा. इस तरह की आमदनी पर आपको इंडेक्सेशन के लाभ के बाद 20 फीसदी के हिसाब से टैक्स चुकाना पड़ेगा. कैसे मिलता है इंडेक्सेशन का लाभ? इंडेक्सेशन का मतलब यह है कि आपने प्रॉपर्टी खरीदने के बाद जितने समय तक उसे अपने पास रखा, उस अवधि की महंगाई दर का असर प्रॉपर्टी की खरीद कीमत में जुड़ जाता है. इससे घर बेचने के बाद हुए मुनाफे में आपके टैक्स का बोझ कम हो जाता है. प्रॉपर्टी को होल्ड करने और फिर बेचने के दूसरे फायदे भी हैं. अगर आपको प्रॉपर्टी बेचने से लॉन्ग टर्म कैपिटल गेन हुआ है तो आप इनकम टैक्स कानून के हिसाब से कई टैक्स छूट का दावा कर सकते हैं. यह कर छूट आपको शॉर्ट टर्म कैपिटल गेन (STCG) में नहीं मिलता. चार्टर्ड अकाउंटेंट वसंत शर्मा ने कहा, ‘घर को रिपेयर करने और उसमें सुधार पर आपने जो पैसे खर्च किये हैं, उसे आप प्रॉपर्टी खरीदने की कीमत में जोड़ सकते हैं. इसके बाद आप उसमें महंगाई के असर को शामिल कर सकते हैं. इसके बाद घर की बिक्री की कीमत में इन सबको घटाकर मुनाफे की गणना कर सकते हैं. इस पर 20% के हिसाब से आप लॉन्ग टर्म कैपिटल गेन्स (LTCG) निकाल सकते हैं. घर बनाने के दौरान अगर आपने लोन लिया और उस पर ब्याज चुकाया है तो उसे भी आप लागत में जोड़ सकते हैं. शर्त यह है कि पहले उस ब्याज की रकम पर टैक्स छूट हासिल ना की गई हो.’ इसे भी पढ़ें: ऑनलाइन ITR फाइल कर रहे हैं तो इन गलतियों से बचें टैक्स कैसे बचाएं? जब आप प्रॉपर्टी बेचते हैं तो उससे हुए मुनाफे पर इनकम टैक्स से बचने के कई रास्ते हैं. प्रॉपर्टी बेचने से हुए मुनाफे की रकम से अगर दो साल के अंदर आप दूसरी प्रॉपर्टी खरीदते हैं या तीन साल के अंदर कोई घर बनाते हैं तो कोई टैक्स नहीं देना पड़ेगा. प्रॉपर्टी खरीदने के लिए दो और घर बनाने के लिए तीन साल की यह रियायत तब भी लागू होती है, जब आपने पहला घर बेचने से पहले ही दूसरा घर खरीद लिया हो. इसके लिए प्रॉपर्टी का विक्रेता के नाम पर खरीदा जाना जरूरी है. प्रॉपर्टी की खरीद-बिक्री के इस तरह के मामलों में अगर आप पूरे कैपिटल गेन का निवेश नहीं करते तो बची हुई रकम पर लॉन्ग टर्म कैपिटल गेन टैक्स लगेगा. क्या रखें सावधानी? प्रॉपर्टी खरीदने के तीन साल के अंदर ही अगर आप उसे बेच देते हैं तो इनकम टैक्स पर मिली पूरी टैक्स छूट वापस ले ली जाएगी. घर की बिक्री से हुए कैपिटल गेन को शॉर्ट टर्म लाभ माना जाएगा और इनकम टैक्स के सामान्य स्लैब के हिसाब से आपको कर चुकाना होगा. टैक्स बचत के और विकल्प भी हैं. अगर आप प्रॉपर्टी बेचने से हुए मुनाफे से दूसरी प्रॉपर्टी नहीं खरीदते तो प्रॉपर्टी बेचने के बाद मिली पूरी रकम को छह महीने के अंदर नेशनल हाइवे अथॉरिटी ऑफ इंडिया (NHAI) और रूरल इलेक्ट्रिफिकेशन कॉरपोरेशन (REC) के बॉन्ड में निवेश कर दें. इन बॉन्ड में किसी एक वित्त वर्ष में हालांकि अधिकतम 50 लाख रुपये का ही निवेश किया जा सकता है.

If the property is sold within 2 years from the date of acquisition then that gain is treated as STCG(No indexation) and taxes will apply at normal rates which are generally applicable. If the property is sold after 2 years then the gain is treated as LTCG and taxes will be levied @ 20%(With indexation). Tax planning for the same can be done by going through sec 54 exemption list


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