Todays message - 06.05.2014

CA. Gurdeep Singh Chawla (C A) (7080 Points)

06 May 2014  

जगत है चलायमान ,
बहती नदी के समान ,
पार कर जाओ इसे तैरकर ,
इस पर बना नहीं सकते घर।

जो कुछ है हमारे भीतर - बाहर ,
दीखता - सा दुखकर - सुखकर ,
वो है हमारे कर्मों का फल।
कर्म है अटल।

~ हरिवंश राय बच्चन