A small effort from poetaster inside me


(Guest)

 

जब जब मैंने जीना चाहा, तुमने मुझे जीने न दिया
लम्हा  वो हसीन कभी मुझे पीने न दिया ।।


आज क्यों हो तुम्हें ग़म , क्यों हैं तुम्हारी आँखें नम,
सुबह वो बीत चुकी है, जिसमें तुमने मुझे कभी बढ़ने न दिया ।।


आंसुओं की वो धार सूखे जिसे ज़माना हो गया,
मत करो उन पैमानों की चाहत, मिल न पायेगी अब तुम्हें कोई राहत ।।


अब न होगी वो सुबह अब न आयेंगे वो पल,
जी ले इस पल को दो पल, फिर न पूछना क्यों न पा सके मंज़िल ।।